उत्त्पत्ति एकादशी - कार्तिक वद ११

कार्तिक वद एकादशी को एकादशी माता की उत्पत्ति हुई थी और उन्होंने मुर नामक असुर का वध किया था. उत्तपत्ति एकादशी के दिन भगवान विष्णु और एकादशी माता की पूजा करते है। उत्तपत्ति एकादशी के दिन कुछ उपायों को करने से संतान, धन और सुख की प्राप्ति होती है।
ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यों के पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते है। उत्पन्ना एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को संतान सुख, आरोग्य और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।

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Last updated Mon, 30-Jan-2023 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • उत्तपत्ति एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और विधिपूर्वक व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है.
  • जो लोग संतानहीन हैं, वे पति-पत्नी साथ में व्रत और पूजा करें. उनकी मनोकामना पूर्ण होगी.
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी , जिससे आपके धन, सुख, समृद्धि में बढ़ोत्तरी होगी।
  • जो दिन या रात में भक्तिपूर्वक इस माहात्म्य का श्रवण करते हैं, वे नि:संदेह ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाते हैं

पूजाविधि के चरण
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स्थापन
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  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य मेंविष्णु जी की फोटो यामूर्ति की स्थापना करे। फिरविष्णु जी कुमक़ुम ,अक्षत,अबीर, गुलाल, थोड़ी सी तुलसीपत्र और फूलो का हार चढ़ाना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ उत्तपत्ति एकादशी व्रत पूजा करिष्ये।
  • यह कहानी भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मानव कल्याण के अर्थ में सुनाई थी। पुराण काल में इंद्र सहित सभी देवता भगवान शंकर के पास गए और हाथ जोड़कर कहा: "हे भोलेनाथ! हम सभी देवता भ्रष्ट हो गए हैं और राक्षसों के अत्याचार से पृथ्वी पर भटक रहे हैं, जिससे हम छुटकारा पा सकें।" दैत्यों के अत्याचार, कृपया हमें कोई उपाय बताएं।" जवाब में शिवजी ने कहा: "राक्षसों की पीड़ा से राहत पाने के लिए, सभी देवताओं के देवता भगवान गरुड़ध्वज विष्णु के पास जाओ: तुम्हारे कष्ट दूर हो जाएंगे।" शिवजी की यह बात सुनकर इन्द्र बहुत प्रसन्न हुए और शिवजी सहित सभी देवता उस स्थान पर आए जहाँ भगवान सो रहे थे और उनकी स्तुति करने लगे: "हे देवाधिदेव! हम सब दैत्यों के भय से आपके पास आए हैं। अतः हमारी रक्षा करो। राक्षसों ने देवताओं को हरा दिया और उन्हें खुद से दूर कर दिया। काम जगन्नाथ है। सभी देवता जो दुष्ट हैं, वे पृथ्वी पर घूमते हैं। " भगवान विष्णु ने शिव की यह बात सुनी और कहा: "यह राक्षस कौन है जो देवताओं को जीतता है? और वह किसका आश्रय है? हे इंद्र, मुझे ये सब विवरण बताओ।" भगवान के शब्दों को सुनकर, इंद्र ने कहा: "हे भगवान, नादिजा नाम का एक राक्षस है, जो सभी ऋणों को नष्ट कर देता है। वह चंद्रावती नामक एक शहर में रहता है। यह राक्षस ब्रह्मा की शक्ति से पैदा हुआ है। उसने सभी देवताओं को जीत लिया है उस शहर; ताकि हे भगवान, आप राक्षसों को मार डालेंगे और देवताओं को जीत दिलाएंगे। इंद्र की बात सुनकर भगवान विष्णु क्रोध से भरे हुए थे और बोले - "मैं इन राक्षसों का विनाश अवश्य करूंगा। तुम सब मेरे साथ चंद्रावती नगरी चलो। भगवान विष्णु के साथ सभी देवता वहां गए। देवताओं में युद्ध हुआ।" और राक्षसों। इसमें राक्षसों ने देवताओं को मार डाला, इसलिए देवताओं ने दसों दिशाओं में नष्ट कर दिया। भगवान वहीं खड़े रहे। यह देखकर, सभी राक्षस उन्हें मारने के लिए वहां पहुंचे। यह देखकर, भगवान ने उन्हें एक तीर से मार दिया अपने धनुष से एक सर्प की तरह, इस प्रकार हजारों राक्षसों को मार डाला। मेरु नाम का एक भी भयानक असुर कभी पराजित नहीं हुआ था। उसके पास अपार शक्तियाँ थीं। कहा जाता है कि भले ही विष्णु हजारों वर्षों तक मेरु नाम के इस असुर से लड़े, लेकिन मेरु पराजित नहीं हुआ। अंत में विष्णु थक गए और बद्रिकाश्रम भाग गए, वहां उन्होंने हेमवती नामक एक सुंदर गुफा में जाकर विश्राम किया। युद्ध के परिश्रम के कारण वह बहुत थक गया था, इसलिए वह गहरी नींद में सो गया। मेरु रक्षक भगवान की खोज में इस गुफा में आए और सोए हुए भगवान विष्णु को मारने का एक तरीका खोजा। फिर एक चमत्कार हुआ। भगवान विष्णु के रूप से एक अत्यंत सुंदर कन्या प्रकट हुई। उसके हाथों में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र थे।इस शक्ति ने मेरु रक्षक को युद्ध में पराजित कर उसका सिर काट दिया।वह यमलोक को चला गया। बाकी के साथ आए असुर भाग गए और रसातल को भर दिया। जब भगवान अपनी नींद से जागे तो वहां असुर का सिर कटा हुआ अवस्था में पड़ा था और उस रूप में लड़की अपने पैरों पर हाथ जोड़कर खड़ी थी, विष्णु उस लड़की से पूछा: "हे लड़की तुम कौन हो और यह क्या है?" बताओ राक्षस को किसने मारा। उत्तर में उस कन्या ने कहा, हे प्रभु, जब तू सो रहा था, तब यह पहरूए तेरे पास आया और तुझे मारने का उपाय ढूंढ़ा, तब मैं अपने पवित्र प्रकाश से प्रकट हुई और मैं ने पहरुओं से लड़कर उसे मार डाला। उस कन्या का उत्तर सुनकर परम भगवान बहुत प्रसन्न हुए और कहा: हे शक्ति, आपने मेरे सहित कई देवताओं को मारकर मेरी रक्षा की और तीनों लोकों में मुझे खुश किया। शक्ति ने कहा, हे भगवान,अगर आप सचमुच प्रसन्न हो तो में सिर्फ इतना मांगती हु की ,'' जो कोई उपवास करके व्रत करता हे उस मनुष्य को उसके पापो से आप मुक्ति दे और जो जितेन्द्रिय मनुष्य आपका उपवास करे तो उसको पापमुक्त करके वैकुण्ठ में रहने का सौभाग्य प्रदान करेंगे।
    '' शक्ति ने परोपकारी वरदान मांगा इसलिए परमात्मा विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और वरदान देते हुए कहा : '' हे देवी आपने जो माँगा हे वही होगा ,एवं त्रिलोक में जो भी मेरे भक्त होंगे वह आपके भी भक्त कहलायेंगे।
    आज से आप का नाम ''उत्त्पत्ति एकादशी '' होगा। जो कोई भी मनुष्य मन से आपका व्रत करेगा और आपकी कथा सुनेगा तो वह उपवासी मनुष्य करोडो वर्षो तक वैकुंठ को भोगेगा। ऐसा कहकर भगवान् विष्णु ने उत्त्पत्ति एकादशी को वरदान के उपरांत आशीर्वाद दिया।
    प्रियजन , यह कथा व्रत करनार मनुष्य को रात्रि में या दिन में अवश्य सुननी चाहिए। जिससे विष्णुलोक के वासी होने का सौभाग्य प्राप्त हो।
    ।। इति श्री स्कंदपुराने कार्तिक पक्षे कार्तिक कृष्णा पक्षे उत्त्पत्ति एकादशी कथा समाप्त।।
  • ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
    भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
    जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
    सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
    तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
    तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
    पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
    तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
    किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
    दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
    अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
    विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
    श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
    तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
    तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
    जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
    कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
  • माखन /मिसरि /फल
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग पाटला - १ नंग
  • पाटला - १ नंग
  • लक्ष्मी नारायण की मूर्ति या फोटो
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच ) - ३ नंग सब
  • गंगाजल और पानी
  • फूलो के हार - १ और फूल अलग से
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • दीपक - रुई - कपूर
  • आरती के लिए थाली
  • कथा की पुस्तक
वर्णन

एकादशी के व्रत का माहात्म्य बहुत हे।  एकादशी को अगियारस भी कहा जाता है। हरेक माह में दो एकादशी आती है : शुक्ल (सूद )पक्ष में  एक और  कृष्ण (वद) पक्ष में दूसरी।  ऐसे बारह महीने में मिलके चौबीस एकादशी आती है।  तदुपरांत तीन साल में आता अधिक माह की २ एकादशी मिलकर कुल छब्बीस एकादशी करते है।

एकादशी में उपवास करना होता है।  वह दो प्रकार के होते है : १) सापात्य  मनुष्य शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की एकादशी का  उपवास कर सकते है।  २) अपत्य मनुष्य को कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत ना करके सिर्फ सम्पत्र व्रत का संकल्प लेना है।  उसी प्रकार शुक्ल पक्ष (सुद ) की क्षय तिथि हो तब भी यह व्रत नहीं करना चाहिए। वैष्णवो को कृष्ण पक्ष की एकादशी करनी चाहिए।  यह व्रत सभी मनुष्य कर सकते है।
 

जो लोग छब्बीस एकादशी के व्रत ना कर सके उनको आषाढ़ शुक्ल (सूद ) एकादशी - देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल (सुद ) एकादशी - प्रबोधिनी एकादशी तक सभी एकादशी करनी है।

* पुराणों में कहे अनुसार परिणित  स्त्रियों को अपने पति की आज्ञा के अनुसार ही एकादशी करनी है वरना नहीं करनी है।

* इस व्रत में उपवास जरुरी है , हो सके तब तक सिर्फ फलाहार करना है। हकीकत में निराहार से फलाहार उत्तम है।