कार्तिक वद एकादशी को एकादशी माता की उत्पत्ति हुई थी और उन्होंने मुर नामक असुर का वध किया था. उत्तपत्ति एकादशी के दिन भगवान विष्णु और एकादशी माता की पूजा करते है। उत्तपत्ति एकादशी के दिन कुछ उपायों को करने से संतान, धन और सुख की प्राप्ति होती है।
ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यों के पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते है। उत्पन्ना एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को संतान सुख, आरोग्य और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।
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एकादशी के व्रत का माहात्म्य बहुत हे। एकादशी को अगियारस भी कहा जाता है। हरेक माह में दो एकादशी आती है : शुक्ल (सूद )पक्ष में एक और कृष्ण (वद) पक्ष में दूसरी। ऐसे बारह महीने में मिलके चौबीस एकादशी आती है। तदुपरांत तीन साल में आता अधिक माह की २ एकादशी मिलकर कुल छब्बीस एकादशी करते है।
एकादशी में उपवास करना होता है। वह दो प्रकार के होते है : १) सापात्य मनुष्य शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की एकादशी का उपवास कर सकते है। २) अपत्य मनुष्य को कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत ना करके सिर्फ सम्पत्र व्रत का संकल्प लेना है। उसी प्रकार शुक्ल पक्ष (सुद ) की क्षय तिथि हो तब भी यह व्रत नहीं करना चाहिए। वैष्णवो को कृष्ण पक्ष की एकादशी करनी चाहिए। यह व्रत सभी मनुष्य कर सकते है।
जो लोग छब्बीस एकादशी के व्रत ना कर सके उनको आषाढ़ शुक्ल (सूद ) एकादशी - देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल (सुद ) एकादशी - प्रबोधिनी एकादशी तक सभी एकादशी करनी है।
* पुराणों में कहे अनुसार परिणित स्त्रियों को अपने पति की आज्ञा के अनुसार ही एकादशी करनी है वरना नहीं करनी है।
* इस व्रत में उपवास जरुरी है , हो सके तब तक सिर्फ फलाहार करना है। हकीकत में निराहार से फलाहार उत्तम है।
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