श्री ब्रह्म सूक्त

यह भगवान ब्रह्मा की पुनीत स्तुति है। जो पुरुष समाहित चित्त से इस स्तुति का श्रवण करता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थोँ मेँ स्नान कर लिया और वह वेदपाठ का फल प्राप्त कर लेता है॥ भगवान ब्रह्मा की इस पुनीत स्तुति का जो पुरुष समाहित चित्त से श्रवण करता है, उसे जगत की उत्पति का ज्ञान प्राप्त होता है और वह ब्रह्म के सामान उत्पति और सृजन की क्षमता को प्राप्त कर लेता है |

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Last updated on : Thu, 30-Mar-2023 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ

पूजाविधि के चरण
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पूजन सामग्री
वर्णन

ओं ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्तात् ।

वि सीमतः सुरुचौ वेन आवः ।

स बुध्नियां उपमा अस्य विष्ठाः ।

सतश्च योनि-मसंतश्च विवः ।

पिता विराामृषभो रयीणाम् ।

अन्तरिक्षं विश्वरूप आविवेश ।

तमुर्-अभ्यर्चन्ति वथ्सम् ।

ब्रह्म सन्तं ब्रह्मणा वर्धय॑न्तः ॥

ब्रह्म देवानजनयत् ।

ब्रह्म विश्वमिदं जगत् ।

ब्रह्मणः क्षत्रं निर्मितम् ।

ब्रह्म ब्राह्मण आत्मना ॥

अन्तरस्मिन्निमे लोकाः ।

अन्तर्विश्वमिदं जगत् ।

ब्रह्मैव भूतानां ज्येष्ठम् ।

तेन कोऽर्हति स्पर्धितुम् ॥

ब्रह्मन् दे॒वास्त्रयस्त्रिगंशत् ।

ब्रह्मन्निन्द्र प्रजापति ।

ब्रह्मन् ह विश्वा भूतानि ।

नावीन्तः समाहिता ॥

चत आशाः प्रचरन्-त्व॒ग्नयः ।

इमं नौ य॒ज्ञं नयतु प्रजानन्न् ।

घृतं पिन्वन्नजरगं सुवीरम् ।

ब्रह्म समिद्-भवत्याहुतीनाम् ॥