गणेशमंत्र जप / अनुष्ठान

श्री गणेश का पूजन जीवन में खुशियां लाता है। श्री गणेश के इन मूल मंत्रों का 108 बार नियमित जप करने से मनोकामना पूर्ति में सहायक होते हैं। किसी भी एक मंत्र का जप किया जा सकता है।
श्री गणेशाय नमः।
ऊँ गं गणपतये नमः।
ऊँ गं ऊँ

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Last updated Sat, 29-Jan-2022 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • यह मंत्र करने वाले को शांति प्रदान करता है और उन्हें अपने शत्रुओं से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।
  • यह व्यक्ति की एकाग्रता और साहस को बढ़ाता है और उनके जीवन में स्पष्टता लाता है।
  • यह दिव्य मंत्र व्यक्ति को धन, बहुतायत, बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद देता है।

पूजाविधि के चरण
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पूजन सामग्री
  • गणपति की फोटो /मूर्ति
  • कपडा पीला /लाल -सवा मीटर
  • बाजोठ -1 , पाटला -२ नंग
  • आसोपालव का तोरण
  • कलश ( ताम्बा ) -1
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच ) - ३ नंग सब
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • गेहू - २५० ग्राम (स्थापन के लिए)
  • श्रीफल -२
  • नागरवेल के पान -5
  • जनेऊ -२ नंग
  • फूलो के हार -3 और फूल अलग से
  • सुपारी -25 नंग
  • धरो -दूर्वा
  • कुमकुम ( रोली ) - १० ग्राम
  • चावल - १० ग्राम
  • अबीर -१० ग्राम
  • गुलाल -१० ग्राम
  • सिंदूर -१० ग्राम
  • चन्दन - १० रुपये
  • लौंग -१० ग्राम
  • इलायची -१० ग्राम
  • कच्चा दूध - १०० ग्राम
  • दही -१०० ग्राम
  • शहद - २५० ग्राम
  • शक्कर - २५० ग्राम
  • देशी घी - ५०० ग्राम
  • पांच मिठाई - ५०० ग्राम
  • गणपति के नैवेद्य - गुड़ और घी
  • नाराछड़ी / मौली
  • बूंदी / बेसन / आटे के गुड़ / शक्कर के लड्डु
  • पांच फल - केले,अनार,चीकू,इत्यादि
  • नैवेद्य - श्रद्धा अनुसार
वर्णन

ऐसी मान्यता है कि बुधवार श्री गणेश की पूजा का विशेष दिन होता है ।

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक कलियुग में भगवान गणेश के धूम्रकेतु रूप की पूजा भी की जाती है। जिनकी दो भुजाएं है। किंतु मनोकामना सिद्धि के लिये बड़ी आस्था से भगवान गणेश का चार भुजाधारी स्वरूप पूजनीय है। जिनमें से एक हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद है। इनमें खासतौर पर श्री गणेश के हाथ में मोदक प्रतीक रूप में जीवन से जुड़े संदेश देता है।

बुद्धि प्रधानता वाले  बुधवार पर बुद्धि के दाता श्री गणेश की मोदक का भोग लगाकर पूजा प्रखर बुद्धि व संकल्प के साथ सुख-सफलता व शांति की राह पर आगे बढऩे की प्रेरणा व ऊर्जा से भर देती है।

ज्योतिषीय मापदंड के अनुरूप दूर्वा छाया गृह केतु को संबोधित करती है। गणपति जी धुम्रवर्ण गृह केतु के अधिष्ट देवता है तथा केतु गृह से पीड़ित जातकों को गणेशजी को 11 अथवा 21 दूर्वा का मुकुट बनाकर गणेश कि मूर्ति/प्रतिमा पर जातक बुधवार कि सायं 4 से 6 बजे के बीच सूर्यास्त पूर्व गणेशजी को अर्पित करना हितकारी रहता है।