शनि दोष निवारण पूजा

शनि देव को सूर्य पुत्र एवं कर्म फल दाता माना जाता है। शनि दोष निवारण पूजा शनि की साढ़ेसाती और ढैया के प्रकोप एवं पाप कर्मो से मुक्ति पाकर जीवन में सुख समृद्धि और यश कीर्ति प्राप्त हो इसलिए की जाती है। कुंडली में शनिग्रह से अशुभ फल मिल रहे हो तो शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और मनुष्य को शुभ फल प्रदान करे इसलिए की जाती है।

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Last updated Mon, 27-Jul-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • शनि के अशुभ प्रभावों को दूर करके आध्यात्मिक और भौतिक विकास प्राप्त करता है।
  • व्यक्ति को करियर या व्यावसायिक जीवन में महान ऊंचाइयों को छूने और सांसारिक मामलों में जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
  • व्यक्ति को बुद्धि, वित्तीय समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने और दुश्मन और बुरी नजर से छुटकारा पाने में मदद करता है।
  • शनि की साढ़े साती और ढैया में राहत प्रदान करता है।

पूजाविधि के चरण
00:58:34 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • शनि का स्थापन शनि के स्थापन के लिए एक चौकी पर नीला वस्त्र रखकर पश्चिम दिशामे पश्चिमाभिमुख धनुषाकार २ अंगुल मंडल में शनिश्चर देव की मूर्ति, फोटो या यन्त्र का स्थापन करके कुमकुम के बदले काले चन्दन से तिलक करना है और नीले पुष्प, शमी का फूल एवं अक्षत से पूजन करना है।

    स्थापन मंत्र :-
    ॐ (ह्रीं) भूर्भुव: स्व: सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्ण वर्ण भो शनिश्चर इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ शनिश्चराय नम:। शनिश्चरमावाहयामि,स्थापयामि।
    शनि के २३००० जप करने है या ब्राह्मण के पास करवाने है।
    न्यास ,ध्यान पूजा करके शनि अष्टोत्तर नामावली से १०८ बार आहुति देकर हवन करना है।
    00:08:22
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ शनि दोष निवारण पूजा करिष्ये। 00:08:22

  • न्यास :-

    ॐ शन्नोदेवीरीती मंत्रस्य दध्याडाथर्वण ऋषि: गायत्री छंद: शनि र्देवता आपो बीजं वर्तमान इति शक्ति शनेश्वर प्रीत्यर्थे जापे विनियोग।
    ॐ दध्याडाथर्वण ऋषये नम: हृदये।
    आपो बीजाय नम: गुह्ये।
    वर्तमान शक्तये नम:पादयो।
    ॐ शन्नो देवी रीत्यंगुष्ठाभ्यां नम:।
    ॐ अभिष्टये तर्जनीभ्यां नम:।
    ॐ आपो भवन्तु मध्यमाभ्यां नम:।
    ॐ पीतये अनामिकाभ्यां नम:।
    ॐ शन्नोरीती कनिष्टिकाभ्यां नम:।
    ॐ अभिस्त्रवन्तु न: इति करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।
    ॐ शन्नोदेवीरीती हृदयाय नम:।
    ॐ अभिष्टये शिरसे स्वाहा।
    ॐ आपो भवन्तु शिखाये वषट।
    ॐ पीतये कवचाय हुम्।
    ॐ शन्नोरीती नेत्र त्रयाय वौषट
    ॐ अभिस्त्रवन्तु न: अस्त्राय फट।

    ध्यान मंत्र :-
    सूर्य पुत्र दीर्घ देहो विशालाक्ष शिव प्रिय:।
    मंदचार प्रसन्नात्मा पीडां हरतु में शनि:।।

    पौराणिक मंत्र :-
    १) ह्रीं नीलांजन समाभासं रविपुत्र यमाग्रजम।
    छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम।।

    बीज मंत्र-
    ॐ शं शनैश्चराय नम:

    तंत्रोक्त मंत्र-
    ॐ प्रां. प्रीं. प्रौ. स: शनैश्चराय नम:।

    वेदोक्त मंत्र-
    ॐ शमाग्निभि: करच्छन्न: स्तपंत सूर्य शंवातोवा त्वरपा अपास्निधा।।
    मंत्र की जप संख्या २३००० होनी चाहिए और इसके दशांश का हवन करवाना हैं।
    फिर शनि अष्टोत्तरशतनामावली से १०८ बार घी की आहुति देनी है।
    हवन में काली उड़द की दाल का प्रयोग करना होता हैं।
    हवन पूजा ख़तम होने के बाद आप को निम्न लिखित कोई भी शनि की वस्तु का दान करना है।
    00:08:22
  • जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
    सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥.......................जय जय श्री शनि देव
    श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
    नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥.......जय जय श्री शनि देव
    क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
    मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥.....जय जय श्री शनि देव
    मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
    लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥...जय जय श्री शनि देव
    देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
    विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥.......जय जय श्री शनि देव
    00:08:22
  • पायस ( खीर ) / काले उड़द की खिचड़ी 00:08:22
पूजन सामग्री
  • बाजोठ -१
  • कलश ( ताम्बा ) -१
  • काला और नीला वस्त्र - सवा मीटर
  • शनिदेव की मूर्ति या फोटो
  • श्री शनिदेव यंत्र
  • शमी के पत्ते
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच )
  • श्रीफल
  • कपूरी पान
  • जनेऊ
  • नाराछड़ी / मौली
  • फूलो के हारऔर फूल अलग से (नीले फूल हो तो बेहतर)
  • चावल - १० ग्राम
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • लौंग -१० ग्राम
  • पंचमेवा - २५० ग्राम
  • पांच मिठाई - ५०० ग्राम
  • धुप - अगरबत्ती -१ पैकेट
  • सुपारी
  • काली उड़द - २५० ग्राम
  • घोड़े की नाल / लोहे के टुकड़ा -१
  • तेल में बनी पुड़िया
  • पान
  • हवन सामग्री
  • दीपक - रुई - कपूर
वर्णन

सूर्य पुत्र शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है,साथ ही वह पितृ शत्रु एवं अशुभ मार्ग और दुख का कारक माना जाता है। शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है।यह तुला राशि में उच्च का और  मेष राशि में नीच का  होता है। अनुराधा नक्षत्र  का स्वामी हैं। शनि की मणि नीलम है।  इसकी धातु लोहा, अनाज चना, और दालों में उडद की दाल मानी जाती है। शरीर में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है। सूर्य पुत्र शनि दुख दायक, शूद्र वर्ण, तामस प्रकृति, वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है।

शनि सीमा ग्रह कहलाता है, क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है। जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना, शनि का विशेष गुण है। यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है।यदि किसी व्यक्ति पर शनि ग्रह की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो तो शनि दोष निवारण पूजा बहुत फलदायी है ।

शनिवार के दिन पीपल पर जल चढ़ाया जाता है तथा सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से शनि दोष के प्रभाव कम होतें है।