बृहस्पति दोष निवारण पूजा

महर्षि अंगिरा के पुत्र बृहस्पति सभी देवताओ के गुरु हे I धनु और मीन राशि के स्वामी हे Iसूर्य ,चंद्र,मंगल इनके मित्र हे I शुक्र और बुध से इनको शत्रुता हे I शनि और राहु सम है I गुरु बृहस्पति ज्ञान के कारक है ,मनुष्य में संस्कार, विवेकपूर्ण व्यवहार, शिक्षा ,और मनुष्य के ब्रह्मरंध्र के स्वामी है I

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Last updated Mon, 27-Jul-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • बृहस्पति पूजा से विवाह संबंधी तकलीफ दूर हो जाती है।
  • बृहस्पति पूजा से धन ,विद्या,पुत्र ,तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
  • समाज में मान सन्मान ,प्रतिष्ठा बढ़ जाती हे।
  • उच्च शिक्षा में आ रही सभी बाधाओं का निवारण होता हे, जातक उच्च पद और सन्मान सहित आदर मिलता हे।

पूजाविधि के चरण
00:58:34 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , पीला वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर उसके ऊपर पीले चावल का स्थापन उत्तरदिशा में चौकी / पाटला के आकार का ६अंगुल पीले पुष्प और चावल से मंडल बनाना हे, फिर गुरु /बृहस्पति की फोटो या मूर्ति या यन्त्र रखकर अबीर,गुलाल,पीला चन्दन ,चढ़ाना हे Iफिर फूलो का हार चढ़ाना हे I
    फिर उनके आगे फल, मेवा, सुपारी ,खारेक,लौंग,इलायची ,मिठाई इत्यादि रखना है Iबायीं और घी का दीपक जलाना है I
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  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थं बृहस्पति दोष निवारण पूजन करिष्ये। 00:08:22

  • बृहस्पति न्यास :-
    ॐ बृहस्पतये इति मंत्रस्य गृत्स्मद ऋषि: त्रिष्टुप छंद: बृहस्पति र्देवता बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोग ।
    ॐ गृत्स्मद ऋषये नम: शिरसि
    त्रिष्टुप छंदसे नम: मुखे
    बृहस्पति देवतायै नम: हृदये।
    इति ऋष्यादि न्यास :-
    ॐ बृहस्पति अति यद्च्यो इत्यंगुष्ठाभ्यां नम :।
    ॐ अर्हादु ध्युमदिति तर्जनीभ्यां नम:।
    ॐ विभाति क्रतुमदिति मध्यमाभ्यां नम:।
    ॐ जनेषु अनामिकाभ्यां नम:।
    ॐ यदि द्यच्चवसsऋतप्प्रजात तदस्मासु कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
    ॐ द्रविणं धेहि चित्रमिति करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।
    ॐ बृहस्पतये अतियदर्यो ह्रदयाय नम: ।
    ॐ अर्हाद ध्युमहिति शिरसे स्वाहा।
    ॐ विभाति क्रतुमहिति शिखायै वषट्
    ॐ जनेषु कवचाय हम्
    ॐ यदिध्य ध्यच्चछवसsऋतप्प्रजात तदस्मासु नेत्र त्रयाय वौषट्
    द्रविणं धेहि चित्र मित्य स्त्र्याय् फट।

    ध्यान मंत्र :-
    ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचनसन्निभम
    बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम ।।

    हवन
    ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: भू भुव: स्व : ॐ बृहस्पतये नम:।।

    वैदिक मंत्र
    १) ओम बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
    यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
    २) ॐ गुं गुरवे नम:।
    ३) ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः

    तांत्रोक्त मंत्र-
    १) ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
    २) ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।
    ३) ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।

    बृहस्पति गायत्री मंत्र -
    १) ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात ||
    २) ॐ वृषभध्वजाय विद्महे करुनीहस्ताय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात ||
    मंत्र की जप संख्या १९००० होनी चाहिए और इसके दशांश का हवन करवाना चाहिए।
    आपकी मनोकामना अनुकूल कोई भी मंत्र को चयन करके बृहस्पति के १९००० जाप करना हे या किसी ब्राह्मण के पास करना हे I
    उसके बाद बृहस्पतिष्टोत्तर शतनामावली से १०८ बार घी से आहुति देनी है I
    उसमे प्रथम पांचबार तुवर दाल से होम करना है।
    अंत में श्रीफल को मौली बांधकर जिस मनोकानमा से हवन किया गया है वो पूर्ण हो ,वही मन में इच्छा करके श्रीफल की आहुति दे देनी है I
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  • जय वृहस्पति देवा,ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
    छिन छिन भोग लगा‌ऊँ, कदली फल मेवा ॥
    तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
    जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥....ऊँ जय वृहस्पति देवा,
    चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
    सकल मनोरथ दायक,कृपा करो भर्ता ॥.......ऊँ जय वृहस्पति देवा,
    तन, मन, धन अर्पण कर,जो जन शरण पड़े ।
    प्रभु प्रकट तब होकर,आकर द्घार खड़े ॥......ऊँ जय वृहस्पति देवा,
    दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
    पाप दोष सब हर्ता,भव बंधन हारी ॥............. ऊँ जय वृहस्पति देवा,
    सकल मनोरथ दायक,सब संशय हारो ।
    विषय विकार मिटा‌ओ,संतन सुखकारी ॥........ऊँ जय वृहस्पति देवा,
    जो को‌ई आरती तेरी,प्रेम सहित गावे ।
    जेठानन्द आनन्दकर,सो निश्चय पावे ॥............ऊँ जय वृहस्पति देवा,
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  • बेसन के लड्डू / पिलीचने की दाल की बनी हुई कोई भी वस्तु /मिठाई 00:08:22
पूजन सामग्री
  • बाजोठ -१
  • पाटला -१ नंग
  • पीला कपडा-सवा मीटर
  • कलश ( ताम्बा ) -१
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच ) - ३ नंग सब
  • श्रीफल
  • सुपारी -१0
  • गुरु /बृहस्पति की फोटो या मूर्ति या यंत्र -१
  • फूलो के हार -३ और फूल अलग से
  • अरहर /तुवर की दाल - २५० ग्राम
  • पीले फूलो के हार और थोड़े छुट्टे पीले फूल
  • कपूरी पान - १
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • नाराछड़ी / मौली
  • चन्दन -१० ग्राम
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • घी-जौ -५० ग्राम , सफ़ेद तिल -५० ग्राम (हवन सामग्री)
  • पांच फल - केले,अनार,चीकू,इत्यादि
  • नैवेद्य - श्रद्धा अनुसार
  • धुप - अगरबत्ती - १ पैकेट
  • दीपक - रुई - कपूर
वर्णन

बृहस्पति विद्या, धन और पुण्य कर्म का कारक ग्रह  है। जब मनुष्य  दूसरों पर अत्याचार या पाप करता है तब बृहस्पति अनिष्टकारी अष्टम भाव में या केंद्र में नीच राशि का होकर मनुष्य की बुद्धि कम कर देता है और बुद्धि समय पर काम नहीं आती है।  ज्योतिष में  द्वितीय भाव में बृहस्पति धन, कुटुंब और वाणी , पंचम भाव में संतान, विद्या , सप्तम भाव मेंजीवन साथी , नवम भाव में धर्म, पिता और लाभ भाव में बड़े भाई, धन लाभ आदि के कारक होते हैं।  अगर किसी की कुंडली में बृहस्पति कमजोर हैं तो यह भावो से मिलनेवाले सुखो में हानि  होती है।  

बृहस्पति कमजोर हो तो व्यक्ति को लीवर, किडनी,डायबिटीज़,यादशक्ति कमज़ोर होना ,मोटापा ,दिमागी बीमारी ,डीप्रेसन, मासपेशी (मज्जा ,बोनमेरो ) से संबंधित, जीभ और कान से संबंधित रोग, पीलिया, जैसे रोग हो जाता है।

बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीड़ित मनुष्य को गुरुवार का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस दिन पीले वस्त्रों को धारण करना भी श्रेष्ठ माना गया है. व्रत का पारायण भी पीले भोजन के साथ करना चाहिए.

बृहस्पति ग्रह के बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।