महर्षि अंगिरा के पुत्र बृहस्पति सभी देवताओ के गुरु हे I धनु और मीन राशि के स्वामी हे Iसूर्य ,चंद्र,मंगल इनके मित्र हे I शुक्र और बुध से इनको शत्रुता हे I शनि और राहु सम है I गुरु बृहस्पति ज्ञान के कारक है ,मनुष्य में संस्कार, विवेकपूर्ण व्यवहार, शिक्षा ,और मनुष्य के ब्रह्मरंध्र के स्वामी है I
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बृहस्पति विद्या, धन और पुण्य कर्म का कारक ग्रह है। जब मनुष्य दूसरों पर अत्याचार या पाप करता है तब बृहस्पति अनिष्टकारी अष्टम भाव में या केंद्र में नीच राशि का होकर मनुष्य की बुद्धि कम कर देता है और बुद्धि समय पर काम नहीं आती है। ज्योतिष में द्वितीय भाव में बृहस्पति धन, कुटुंब और वाणी , पंचम भाव में संतान, विद्या , सप्तम भाव मेंजीवन साथी , नवम भाव में धर्म, पिता और लाभ भाव में बड़े भाई, धन लाभ आदि के कारक होते हैं। अगर किसी की कुंडली में बृहस्पति कमजोर हैं तो यह भावो से मिलनेवाले सुखो में हानि होती है।
बृहस्पति कमजोर हो तो व्यक्ति को लीवर, किडनी,डायबिटीज़,यादशक्ति कमज़ोर होना ,मोटापा ,दिमागी बीमारी ,डीप्रेसन, मासपेशी (मज्जा ,बोनमेरो ) से संबंधित, जीभ और कान से संबंधित रोग, पीलिया, जैसे रोग हो जाता है।
बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए पीड़ित मनुष्य को गुरुवार का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस दिन पीले वस्त्रों को धारण करना भी श्रेष्ठ माना गया है. व्रत का पारायण भी पीले भोजन के साथ करना चाहिए.
बृहस्पति ग्रह के बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
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