वरुथिनी एकादशी - चैत्र वद ११

वैशाख के महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरूथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार इस एकादशी के व्रत से समस्त पाप व ताप नष्ट होते हैं। मान्यता है कि इस लोक के साथ-साथ व्रती का परलोक भी सुधर जाता है।
वैसे तो भारतीय संस्कृति में सभी छब्बीस एकादशियों को अमोघ फल देने वाला बताया गया है, किंतु वरूथिनी एकादशी को दुख, दरिद्रता और कष्टमुक्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावी माना गया है।

For Vidhi,
Email:- info@vpandit.com
Contact Number:- 1800-890-1431

Eligible For Puja: Anyone 0 Students enrolled
Last updated Sun, 19-Feb-2023 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है।
  • वरूथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
  • शास्त्रों में अन्नदान और कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है।
  • इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है।

पूजाविधि के चरण
00:00:00 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:00:00 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य मेंविष्णु जी की फोटो यामूर्ति की स्थापना करे। फिरविष्णु जी कुमक़ुम ,अक्षत,अबीर, गुलाल, थोड़ी सी तुलसीपत्र और फूलो का हार चढ़ाना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा करिष्ये।
  • भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के निवेदन करने पर इस एकादशी व्रत की कथा और महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में रेवा नदी (नर्मदा नदी) के तट पर अत्यन्त दानशील और तपस्वी मान्धाता नामक राजा का राज्य था। दानवीर राजा जब जंगल में तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा और साथ ही वह राजा को घसीट कर वन में ले गया। ऐसे में राजा घबराया और तपस्या धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोधित होने के बजाय भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
    तपस्वी राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान श्री हरि वहां प्रकट हुए़ और सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर दिया, परंतु तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। इससे राजा मान्धाता बहुत दुखी थे।
    भगवान श्री हरि विष्णु ने राजा की पीड़ा और दु:ख को समझकर कहा कि पवित्र नगरी मथुरा जाकर तुम मेरी वाराह अवतार के विग्रह की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो पैर काटा है, वह ठीक हो जाएगा। तुम्हारा इस पैर की यह दशा पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुई है।
    भगवान श्रीहरि विष्णु की आज्ञा मानकर राजा पवित्र पावन नगरी मथुरा पहुंच गए और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इस व्रत को किया जिसके चलते उनका खोया हुआ पैर उन्हें पुन: प्राप्त हो गया। और वह फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया।
    यदि कोई अभागिनी स्त्री इस व्रत को करती है तो उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।वरूथी सबकी भक्ति और मुक्ति देने वाली है और मनुष्य को सभी पापों से दूर रखती है और गर्भधारण से मुक्ति दिलाती है।
    इस वरूथी एकादशी व्रत से राजा मान्धाता स्वर्ग को चले गए थे।धंधुमार आदि अनेक राजा इस व्रत से मुक्त हुए हैं।
    भगवान शंकर ने भी पार्वतीजी के साथ यह व्रत लिया था, जिससे भगवान शंकर को ब्रह्मकपाल से मुक्ति मिली।यदि कोई दस वर्षों तक तपस्या करता है और इस व्रत का फल उससे अधिक होता है, तो इस व्रत को करने से फल प्राप्त होता है।उसका इस लोक में और परलोक में कामना पूर्ण होती है।
  • ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
    तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
    पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है ।
    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
    नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
    शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
    विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
    नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
    शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
    नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
    योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
    देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
    कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
    श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
    रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
    देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
    पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
    परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
    शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
    जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
    जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
  • माखन / मिसरी / मेवा
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग
  • पाटला - १ नंग
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • विष्णु भगवान् की मूर्ति /फोटो
  • फूलो के हार -१ और फूल अलग से
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • दीपक -१
  • धुप - अगरबत्ती
वर्णन

वरुथिनी एकादशी सौभाग्य देने, सब पापों को नष्ट करने तथा मोक्ष देने वाली है।वरुथिनी एकादशी के बारे में भगवान कृष्‍ण ने युधिष्ठिर को इसके महत्‍व के बारे में बताया था। कहा जाता है कि इस व्रत को जो भी करता है उसे मृत्‍यु के उपरांत बैकुंठ की प्राप्ति होती है और जीवन भर सौभाग्‍य की प्राप्ति होती है। मन को भी शांति और सुकून मिलता है।
इस दिन भगवान विष्‍णु को तुलसी मिश्रित जल अर्पित करने से आपके घर में लक्ष्‍मी का आगमन होता है। इस व्रत का पारण करने के बाद उपासक को खरबूजे का दान करना चाहिए।