योगिनी एकादशी - जयेष्ठ वद ११

जयेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये एकादशी व्यक्ति के सभी पापों को समाप्त करती हे। इस एकादशी का विधिवत व्रत रखने से व्यक्ति पृथ्वीलोक में सारे सुख भोगता है और मृत्यु के बाद परलोक में भी मुक्ति को प्राप्त करता है। इस एकादशी की व्रत कथा पढ़ने या सुनने से ८८ हजार ब्राह्मणों को भोज कराने का पुण्य प्राप्त होता है।

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Last updated Wed, 22-Feb-2023 English
पूजा के लाभ
  • यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप,गुण और यश देने वाली है।
  • योगिनी एकादशी महान पापों का नाश करने वाली और महान पुण्य-फल देने वाली है।
  • योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है।
  • भगवान विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पूजाविधि के चरण
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स्थापन
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  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य मेंविष्णु जी की फोटो यामूर्ति की स्थापना करे। फिरविष्णु जी कुमक़ुम ,अक्षत,अबीर, गुलाल, थोड़ी सी तुलसीपत्र और फूलो का हार चढ़ाना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ योगिनी एकादशी व्रत पूजा करिष्ये।
  • योगिनी एकादशी व्रतकथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। जयेष्ठ मास की कृष्ण एकादशी को "योगनी" एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं। जब युधिष्ठिर जयेष्ठ कृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं।
    एक बार की बात है धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि भगवन, मैंने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुना। अब कृपया जयेष्ठ कृष्ण एकादशी की कथा सुनाइए। इसका नाम क्या है? माहात्म्य क्या है? यह भी बताइए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! जयेष्ठ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। मैं तुमसे पुराणों में वर्णन की हुई कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
    स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा। इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया। हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ ‍उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’ कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहाँ जाकर उनके पैरों में पड़ गया। उसे देखकर मारर्कंडेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत कह ‍सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ। यदि तू ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे। यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। भगवान कृष्ण ने कहा- हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत ८८ हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है।
  • ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
    तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
    पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है ।
    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
    नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
    शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
    विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
    नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
    शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
    नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
    योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
    देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
    कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
    श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
    रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
    देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
    पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
    परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
    शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
    जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
    जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
  • माखन / मिसरी / मेवा
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग
  • पाटला - १ नंग
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • विष्णु भगवान् की मूर्ति /फोटो
  • फूलो के हार -१ और फूल अलग से
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • दीपक -१
  • धुप - अगरबत्ती
वर्णन

 योगिनी एकादशी से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति पारिवारिक सुख पाता है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।
इस व्रत को विधित रखने से सिद्धि और सफलता मिलती है। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए हुए श्राप का निवारण हो जाता है। यह एकादशी समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रुप, गुण और यश देने वाली कही गई है। वर्तमान समय में यह व्रत कल्पतरू के समान है तथा इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी कष्‍टों दूर होते हैं तथा हर तरह के श्राप तथा समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर यह व्रत पुण्यफल प्रदान करता है।