मोहिनी एकादशी - वैशाख सुद ११

वैशाख मास की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आज के दिन भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत का एक कलश निकला था जिसे दानवों से बचाने के लिए श्री हरि विष्णु ने मोहिनी का अवतार रखा था। मोहिनी एकादशी व्रत रखने से सभी प्रकार के पाप और दुख नष्ट हो जाते हैं ।

For Vidhi,
Email:- info@vpandit.com
Contact Number:- 1800-890-1431

Eligible For Puja: Anyone 0 Students enrolled
Last updated Wed, 22-Feb-2023 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • मोहिनी एकादशी सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती है ।
  • इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की कृपा प्राप्त होती है।
  • इस व्रत के प्रभाव से जाने - अनजाने में हुए पापो का नाश होता है।

पूजाविधि के चरण
00:00:00 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:00:00 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य मेंविष्णु जी की फोटो यामूर्ति की स्थापना करे। फिरविष्णु जी कुमक़ुम ,अक्षत,अबीर, गुलाल, थोड़ी सी तुलसीपत्र और फूलो का हार चढ़ाना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ मोहिनी एकादशी व्रत पूजा करिष्ये।
  • धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, यह सब विस्तारपूर्वक बताइए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।
    महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
    सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके पाँच पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा। वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा।
    एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई। वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।
    हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।
  • ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
    तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
    पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है ।
    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
    नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
    शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
    विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
    नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
    शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
    नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
    योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
    देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
    कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
    श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
    रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
    देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
    पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
    परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
    शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
    जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
    जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
  • माखन / मिसरी / मेवा
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग
  • पाटला - १ नंग
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • विष्णु भगवान् की मूर्ति /फोटो
  • फूलो के हार -१ और फूल अलग से
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • दीपक -१
  • धुप - अगरबत्ती
वर्णन

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथी सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है। इस दिन जो व्रत रहता है उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं।
ऐसी कथा है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने संसार के कल्याण के लिए मोहिनी रूप धारण किया था। सागर मंथन के बाद जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर विवाद हो गया और असुर अमृत कलश लेकर भाग गए तब भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा था।

भगवान विष्णु जिनकी माया से संसार मोहित रहती है उनके मोहिनी रूप पर सुध बुध खोकर असुरों ने अमृत कलश इन्हें सौंप दिया और फिर संसार देवताओं को अमृत पिलाकर भगवान ने उन्हें अमर बना दिया। भगवान के इसी स्वरूप की पूजा मोहिनी एकदशी के दिन की जाती है। पुराणों के अनुसार इस व्रत पूजन से मनुष्य मोह माया से ऊपर उठकर उत्तम लोक में स्थान पाने का अधिकारी बन जाता है तथा व्यक्तित्व में प्रभाव उत्पन्न होता है और व्यक्ति के सभी कार्य सिद्ध होते हैं।