इंदिरा एकादशी - भाद्रपद वद ११

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है। आज के दिन पितरों के लिए व्रत रखना माना जाता है। माना जाता है कि आज के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही यमलोक में यातनाएं झेल रहे पितरों को भी स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी का व्रत करने और दान-पुण्य करने से घर में लगने वाला पितृ दोष समाप्त होता है।

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Last updated Wed, 22-Feb-2023 English
पूजा के लाभ
  • इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं ।
  • इंदिरा एकादशी का व्रत करने और दान-पुण्य करने से घर में लगने वाला पितृ दोष समाप्त होता है।
  • इस व्रत को करने से सभी जीवत्माओं को उनके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
  • इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता ।

पूजाविधि के चरण
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स्थापन
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  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य मेंविष्णु जी की फोटो यामूर्ति की स्थापना करे। फिरविष्णु जी कुमक़ुम ,अक्षत,अबीर, गुलाल, थोड़ी सी तुलसीपत्र और फूलो का हार चढ़ाना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ इंदिरा एकादशी व्रत पूजा करिष्ये।
  • धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान, भाद्रपद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? सो कृपा करके कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अ‍धोगति से मुक्ति देने वाली होती है। हे राजन! ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।
    प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया। सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन, आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि, आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।
    मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में ‍कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम भाद्रपद कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा। हे अच्युत, हे पुंडरीकाक्ष, मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, ‍पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें। रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।
    नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया।
    हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं
  • ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।
    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।
    तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।
    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।
    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
    पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है ।
    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।
    नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
    शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।
    विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।
    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
    नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।
    शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
    नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।
    योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
    देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।
    कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
    श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।
    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।
    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
    रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।
    देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
    पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।। ॐ ।।
    परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।।
    शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ।। ॐ ।।
    जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
    जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ ।।
  • माखन / मिसरी / मेवा
पूजन सामग्री
  • बाजोठ / चौकी - १ नंग
  • पाटला - १ नंग
  • लाल वस्त्र - सवा मीटर स्थापन के लिए
  • विष्णु भगवान् की मूर्ति /फोटो
  • फूलो के हार -१ और फूल अलग से
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • दीपक -१
  • धुप - अगरबत्ती
वर्णन

पद्म पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का पुण्य अगर पितृगणों को दे दिया जाए तो नरक में गए पितृगण भी नरक से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
इस व्रत को करने से सभी जीवत्माओं को उनके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता एवं इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं एवं व्रत करने वाला भी स्वयं स्वर्ग में स्थान पाता है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा होता है तो इस दिन विधि-विधान से व्रत कर उनके नाम से दान-दक्षिणा देने से पितर स्वर्ग में चले जाते हैं।