अश्विन मास की वद एकादशी को रमा एकदशी के नाम से जाना जाता है। उत्तरी भारत के कैलेंडर के अनुसार रमा एकादशी कार्तिक माह में आती है, जबकि तमिल कैलेंडर में ये पुरातास्सी महीने में आती है।
आंध्रप्रदेश, कर्नाटका, गुजरात एवं महाराष्ट्र में रमा एकादशी अश्विन ,आसो(अश्वायूज) महीने में आती है। मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के पाप धुल जाते है। चतुर्मास की यह अंतिम एकादशी मानी जाती है।रमा एकादशी के बाद देवउठनी एकादशी आती है और चतुर्मास का अंत हो जाता है।
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एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पितहै। धनतेरस और दिवाली से पहले रमा एकादशी का आना धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है।
इस व्रत को रखने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही सभी तरह के पाप से मुक्ति मिलती है और इस व्रत को करने से महालक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
दिवाली से पहले रमा एकादशी के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने का सबसे अच्छा मुहूर्त माना जाता है और इस दिन के उपवास से ही माता लक्ष्मी की आराधना शुरू हो जाती है, जो दिवाली पूजन तक चलती है। माता लक्ष्मी को रमा भी कहा जाता है इसलिए अश्विन मास की इस एकादशी को भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा होती है ।
शास्त्रों के अनुसार, मां लक्ष्मी के नाम पर ही इस एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत के करने से मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है ।
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