कालसर्प दोष निवारण पूजा

राहु और केतु जब सभी नौ ग्रह (सूर्य , चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि ) के बीच आते हैं तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है। राहु ग्रह पिछले जन्म के कर्मों को दर्शाता है। काल राहु ग्रह के "अभिदेवता" और सर्प उसके "प्रतिदेवता" माने जाते है। यह पूजा करने से किसी भी व्यक्ति को ग्रहों से आशीर्वाद प्राप्त होकर सभी दोष दूर हो जाते है। नाग गायत्री मंत्र '' ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प : प्रचोदयात''। इस मंत्र को कालसर्प दोष के निवारण हेतु अत्यंत प्रभावी माना गया है। इसके पश्चात ''ॐ नाग्देवताय नाम:'' का भी जाप कर सकते है।

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Last updated Mon, 27-Jul-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • श्राद्ध अमावस्या दिवस या सर्व पितृ अमावस्या दिवस पर इस दोष से पीड़ित लोगों द्वारा दी जाने वाली विशेष श्राद्ध पूजा योग के हानिकारक प्रभावों को शांत करने और शुभ परिवर्तन लाने में मदद करती है।
  • काल सर्प दोष के लाभ यह हैं कि यदि जातक काल सर्प शांति करता है तो सांपों की 9 प्रजातियां उसे आशीर्वाद देती हैं।
  • कालसर्प दोष निवारण पूजा से महेनत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
  • कालसर्प दोष निवारण पूजा से अकारण कलंकित होने से बच जाते है।
  • कालसर्प दोष निवारण पूजा से संतानप्राप्ति होती है और संतान की उन्नति होती है।
  • कालसर्प दोष निवारण पूजा से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और आपस में प्यार बढ़ता है।
  • कालसर्प दोष निवारण पूजा से स्वप्न में आनेवाले साप, नाग,और भयावह दिखनेवाली चीज़ो से मुक्ति मिलती है।

पूजाविधि के चरण
01:15:18 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर पंचदेव की स्थापना करे। दायी बाजु गणेश जी की मूर्ति या फोटो रखे I बायीं और शिवजी,उसके बाजु में कृष्ण ,मध्य में मातारानी,उसके आगे इष्ट देवी/देवता, फिर गणेशजी के आगे जल से भरा हुआ कलश उसके ऊपर ५ कपूरी पान रखकर श्रीफल रखना हे।
    नव नाग भी थाली में रखकर पूजा करनी हे। फिर फूलो का हार चढ़ाना हे। फिर उनके आगे,फल, मेवा ,खारेक,लौंग,इलायची ,मिठाई इत्यादि रखना है I
    बायीं और घी का दीपक जलाना है I
    00:08:22

  • गणेश -पूजन :-
    ॐ लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम् । आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम्।
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ गजवदनमचिन्त्यं तीक्ष्णदंत त्रिनेत्रं वृहदुदरमशेषं थ्नूतिराजंपुराणम् । अमरवरसुपूज्यं रख्नवर्णं सुरेशं पशुपति सुतमीशं विघ्नराजं नमामि सकलविघ्नविनाशनद्वारा ॥
    माता पार्वती- पूजन :-
    ॐ रेमादि तनयां देवी वरदां शङ्करप्रियाम् ।लम्बोदरस्य जननीं त्वं पुजां करोम्यहम् ॥
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मानयति कश्चन । ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥

    कार्तिकेय-पूजन :-
    ॐ यदक्रन्द: प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात् ।
    श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन् ॥
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे --
    ॐ यत्र बाणा: सम्पतन्ति कुमारा विशिखा इव । तन्न इन्द्रो बृहस्पतिरदिति: शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु ॥
    नन्दीश्वर-पूजन :-
    ॐ महाकालयम महावीर्यं शिव वाहनं उत्तमम गणनामत्वा प्रथम वन्दे नंदिश्वरम महाबलम ॥
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ प्रैतु वाजी कनिक्रदन्नान्दद्रासभ: पत्वा । भरन्नग्निं पुरीष्यं मा पाद्यायुष: पुरा ॥
    वीरभद्र-पूजन :-
    ॐ कुद्रु: सदुष्टष्ठपुट: स धर्जटिजर्टां तडिद्वहिलसटोग्ररोचिषम् ।
    उत्कृत्य रुद्र:सहसोत्थितो हसन् गम्भीरनादो विससर्ज तां भुवि॥ ततोऽतिकायस्तनुवा स्पृशन्दिवं।
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रा राति: सुभग भद्रो अध्वर: । भद्रा उत प्रशस्तय: ॥
    कुबेर-पूजन :-
    ॐ कुविदग्ङ यवमन्तो यवं चिद्यथादान्त्यनुपूर्व वियूय ।इहेहैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति ॥
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ वय सोम व्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रत: । प्रजावन्त: सचेमहि ॥
    कीर्तिमुख-पूजन :-
    ॐ असवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा गणपतये स्वाहाऽभिभुवे स्वाहाऽधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा स सर्पाय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वहा दिवा पतयते स्वाहा ॥
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ ओजश्च मे सहश्च म आत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मेंऽगानि चमेऽस्थीनि च मे परु षि च मे शरीराणि च मे आयुश्च मे जरा च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ।
    सर्प-पूजन :-
    ॐ सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिता:॥
    ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतड़ागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:॥
    पूजन पश्चात् प्रार्थना करे -
    ॐ अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं शन्खपालं , ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा एतानि नव नामानि, नागानाम च महात्मनं सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत ॥
    ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी माहि तन्नो सर्प प्रचोदयात।।

    शिव पूजन प्रारम्भ :-
    शिव पूजन करने के लिए हाथ में विविध सामाग्री लेकर मंत्रोच्चार पश्चात् शिवजी को अर्पित(चढ़ाते)जाएँ-
    शिवजी का ध्यान -
    ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलान्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
    पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैव्यघ्रिकृति वसानं विश्वद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥
    ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नम: । बाहुभ्यामुत ते नम: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:ध्यानार्थे बिल्वपत्रं समर्पयामि। (अक्षत व बिल्वपत्र चढ़ा दे )
    आसन --
    ॐ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।
    तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:आसनार्थे बिल्वपत्राणी समर्पयामि ।(आसन के लिये बिल्वपत्र चढ़ाये)
    पाद्य-
    ॐ वामिषुं गिरिशन्तं हस्ते बिभर्ष्यस्तवे । शिवां गिरित्र तां कुरु मा हि सी: पुरुषं जगत् ॥पादयो: पाद्यं समर्पयामि । (जल चढ़ाये )
    अर्घ्य -
    ॐ शिवने वचसात्वा गिरिशाच्छा वदामसि ।यथा न: सर्वमिज्जगदयक्ष्म सुमना असत् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम। हस्तयोरर्घ्य समर्पयामि । (अर्घ्य समर्पित करे )
    आचमन :-
    ॐ अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।अर्हीश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। आचमनीयं जलं समर्पयामि । (जल चढ़ाये )
    स्नान:-
    ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो।
    वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद्॥
    ॐ असौयस्ताम्रो अरुण उत बभ्रु: सुमन्ग्ड़ल: ।
    ये चैन रुद्राअभितो दिक्षु श्रिता: सहस्त्रशोऽवैषा हेड ईमहे ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।। स्नानीयं जलं समर्पयामि । स्नानान्ते आचमनीयं जलं च समर्पयामि । ( स्नानीय और आचमनीय जल चढ़ाये )
    पय:स्नान :-
    ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा: ।पयस्वती: प्रदिश: सन्तु मह्यम् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। पय:स्नानं समर्पयामि पय:स्नानान्ते शुध्दोदक स्नानं समर्पयमि। शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
    ( दूध से स्नान कराये )पुन: शुध्द जल से स्नान कराये और आचमन के लिये जल चढा़ये) दधिस्नान :-
    ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिन: । सुरभि नो मुखाकरत्प्र ण आयू षि तारिषत् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। दधिस्नानं समर्पयामि दधिस्नानान्ते शुध्दोदक स्नानं समर्पयामि। (दही से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढ़ाये)
    घृतस्नान :-
    ॐ घृतंमिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम ।
    अनुष्वधमा वहमादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    घृतस्नानं समर्पयामि। घृतस्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि ॥
    शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(घृत से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये और पुन: आचमन के लिये जल चढ़ाये )
    मधुस्नान :-
    ॐ मधु वाताऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव: । माध्वीर्न: सन्त्वोषधी: ॥
    मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रज: । मधु द्यौरस्तु न: पिता ॥
    मधुमान्नोवनस्पतिर्मधुमाँ२ अस्तु सूर्य: । माध्वीर्गावो भवन्तु न: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    मधुस्नानं समर्पयामि। मधुस्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि।
    (मधु से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढ़ाये )
    शर्करास्नान :-
    ॐ अपारसमुद्रयस सूर्ये सन्त समाहितम् ।
    अपारसस्य योरसस्तं वो गृह्माम्युत्तममुपयामगृहीतो-ऽसीन्द्रायत्व जुष्टं गृह्माम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    शर्करास्नानं समर्पयामि। शर्करास्नानान्तेशुध्दोदकस्नानं समर्पयामि।
    शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(शर्करा से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )
    पञ्चामृतस्नान :-
    ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतस: ।
    सरस्वती तुपञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ॥
    ॐ भूर्भव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवय नम:।
    पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि। पञ्चामृतस्नानान्ते शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि।
    शुध्दोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (पञ्चामृत से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )
    गन्धोदकस्नान :-
    ॐ अ शुना तेअशु: पृच्यतां परुषा परु: ।गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युत: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ,गन्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । ( गन्धोदक से स्नान कराकर आचमन के लिये जल चढा़ये )
    शुध्दोदकस्नान :-
    ॐ शुध्दवाल: सर्वशुध्दवालो मणिवालस्त आश्विना:श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरुपा: पार्जन्या ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम: शुध्दोदकस्नानं समर्पयामि ।( शुध्द जल से स्नान कराये )
    आचमनीय जल :-
    ॐ अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्योभिषक् ।अहींश्च सर्वाञ्चम्भयन्त्सर्वश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव ॥
    ॐ भूर्भूव:स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।आचमनीयं जलं समर्पयामि ।( आचमन के लिये जल चढा़ये )
    अभिषेक :-
    शिव पूजन में शुध्दजल, गंगाजल अथवा दुग्धादि से लिंगाष्टक स्त्रोतम ,शिवमहिम्न:स्तोत्रम् या रुद्राष्टाध्यायी आदि से अथवा निम्न मन्त्रों का पाठ करते हुए शिवलिंग का अभिषेक करे :-
    ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नम: । बाहुभ्यामुत ते नम: ॥ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ॥
    तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि॥
    यामिषुं गिरिशन्त हस्ते बिभर्ष्यस्तवे ।
    शिवां गिरित्र तां कुरु मा हि सी: पुरुषं जगत् ॥
    शिवेन न: सर्वमिज्जगदयक्ष्म सुमना असत् ॥
    अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।
    अहींश्च सर्वाञ्चम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव ॥
    असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रु: सुमन्ड़ल: ।
    ये चैन रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिता: सहस्त्रशोऽवैषा हेड ईमहे ॥
    असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित:।
    उतैनं गोपा अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्य: स दूष्टो मृडयाति न: ॥
    नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीढुषे ।
    अथो ये अस्य स्त्वनोऽहं तेभ्योऽकरं नम: ॥
    प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्त्न्योर्ज्याम् ।
    याश्च ते हस्त इषव: परा ता भगवो वप ॥
    विज्यं धनु: कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ उत ।
    अनेशन्नस्य याइषव आभुरस्य निषन्ड़धि: ॥
    या तेहेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनु: ।
    तयाऽस्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मयापरि भुज ॥
    परि ते धन्वनोहेतिरस्मान्वृणक्त विश्वत: ।
    अथो यइषुधिस्तवारे अस्मन्नि धेहि तम् ॥
    अवतत्य धनुष्य सहस्त्राक्ष शतेषुधे ।
    निशीर्यशल्यानां मुखा शिवो न: सुमना भव ॥
    नमस्तआयुधायानातताय धृष्णवे ।
    उभाभ्यामुत तेनमो बाहुभ्यां तव धन्वने ॥
    मा नोमहान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम् ।
    मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष: ॥
    मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिष: ।
    मा नो वीरान्रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्त: सदमित त्वा हवामहे ॥
    अभिषेक के अनन्तर शुध्दोदक-स्नान कराये । तत्पश्चात् शान्तिक मन्त्रों से शान्त्यभिषेक करें।
    वस्त्र :-
    ॐ असौयोऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित: ।
    उतैनं गोपा अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्य: स दृष्टो मृडयाति न: ॥
    ॐ भूर्भूव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    वस्त्रं समर्पयामि। वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (वस्त्र चढा़ये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )
    यज्ञोपवीत :-
    ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः।
    स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्चविवः॥
    ॐ नमोऽस्तुनोलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीढुषे ।
    अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकरं नम: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम।
    यज्ञोपवीतं समर्पयामि। यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । ( यज्ञोपवीत सम्रर्पित करे तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )
    उपवस्त्र :-
    ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरुथमाऽसदत्स्व:।
    वासो अग्नेविश्वरुप सं व्यवस्व विभावसो ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम।
    उपवस्त्रं समर्पयामि। उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (उपवस्त्र चढ़ाये, आचमन के लिये जल चढ़ाये)
    गन्ध :-
    ॐ नमःश्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः।
    शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च॥
    ॐ प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्त्न्योर्ज्याम् ।
    याश्च ते हस्त इषव: परा ता भगवो वप॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरासाम्बसदाशिवाय नम:। गन्धानुलेपनं समर्पयामि । (चन्दन लगावें)
    ( शिव पूजन में शिव लिंग पर भस्म चढ़ाने का विधान है)
    भस्म :-
    अग्निहोत्र समुदभूतं विरजाहोमपाजितम।
    गृहाण भस्म हे स्वामिन। भक्तानां भूतिदाय ॥
    सर्वपापहरं भस्म दिव्यज्योति स्समप्रभम्।
    सर्वक्षेमकरं पुण्यं गृहाण परमेश्वर ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। भस्मस्नान समर्पयामि । (भस्मचढ़ाये )
    सुगन्धित द्रव्य :-
    ॐ त्र्यम्बकंयजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
    उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि । ( सुगन्धित द्र्व्य चढ़ाये )
    अक्षत :-
    ॐ व्रीहयश्च मे यवाश्च मे माषाश्च मे तिलाश्च मे मुद्गाश्च मे खल्वाश्व मे प्रियड्गवश्च मेऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। अक्षतान् समर्पयामि । ( अक्षत चढा़ये )
    पुष्पमाला :-
    ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च ।
    नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च॥
    ॐ विज्यं धनु: कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ उत ।
    अनेशन्नस्य या इषव आभुरस्य निषनॆड़्धि: ॥
    ॐ भूर्भुव:स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। पुष्पमालां समर्पयामि । (पुष्प्माला पहनावें)
    बिल्वपत्र :-
    ॐ नमोबिल्मिने च कवाचिने च नमो वर्मिणे च वरुथिने च नम:।
    श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमोदुन्दुभ्याय चाहनन्याय च ॥
    त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् ।
    त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। बिल्वपत्राणि समर्पयामि । ( बिल्वपत्र चढ़ाये )
    शिव पूजन में बिल्वाष्टकम्, शिवमहिम्न स्तोत्र, का पाठ करते हुए शिव लिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाते जाएँ।
    शमीपत्र:-
    अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च ।
    दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम् ।।
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। शमीपत्राणि समर्पयामि । (शमीपत्र चढ़ाये )
    नानापरिमलद्रव्य :-
    ॐ अहिरिवभोगै: पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमान: ।
    हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा सं परि पातु विश्वत: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    नानापरिमल द्रव्याणि समर्पयामि ।(विविध परिमलद्रव्य चढ़ाये)
    शिव पूजन करने के लिए हाथ में अक्षत व बिल्वपत्र लेकर शिव जी के अंगो का पूजन करें :-
    ॐ अघोराय नम:पादौ पूजयामि ।
    ॐ शर्वाय नम:जङ्घे पूजयामि ।
    ॐ विरूपाक्षाय नम:जानुनी पूजयामि ।
    ॐ विश्वरूपिणे नम:गुल्फौ पूजयामि ।
    ॐ त्र्यम्बकाय नम:गुह्यां पूजयामि ।
    ॐ कपर्दिने नम:नाभि पूजयामि ।
    ॐ भैरवाय नम:उदरं पूजयामि ।
    ॐ शूलपाणये नम:नेत्र: पूजयामि ।
    ॐ ईशानाय नम: शिर: पूजयामि ।
    ॐ महेश्वराय नम:सर्वाङ्ग पूजयामि ।
    धूप :-
    ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च ।
    नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमायचेषुमते च ॥
    ॐ या तेहेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनु:।
    तयाऽस्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मयापरि भुज ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। धूपमा घ्रापयामि । (धूप दें )
    दीप :-
    ॐ नमः आराधेचात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च ।
    नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वप्याय च ॥
    ॐ परि ते धन्वनो हेतिरस्मान् वृणवतु विश्वत:।
    अथो यइषुधिस्तवारे अस्मन्नि धेहि तम् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। दीपं दर्शयामि। (दीप दिखलाये और हाथ धो ले )
    नैवेद्य :-
    ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च ।
    नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुधन्याय च॥
    ॐ अवतत्य धनुष्ट्व सहस्त्राक्ष शतेषुधे ।
    निशीर्य शल्यानां मुखा शिवो न: सुमना भव ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम: नैवेद्यं निवेदयामि ।
    नैवेद्यान्ते ध्यानम् , ध्यानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । नैवेद्य निवेदित करे।
    तदनन्तर भगवान् का ध्यान करके आचमनके लिये जल चढ़ाये )
    करोद्वर्तन :-
    ॐ सिञ्चति अप्रि षिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च ।
    सुरायै बभ्रूवै मदे किन्त्वो वदति किन्त्व: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। करोद्वर्तनार्थे चन्दनानुलेपनं समर्पयामि । (चन्दन का चढ़ाये)
    ऋतुफल :-
    ॐ या: फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी: ।
    बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हस: ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    ऋतुफलानि समर्पयामि (ऋतुफल समर्पित करे)
    धतूराफल :-
    ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वाक्षित्या उन्नयामि ।
    समापो अद्भिररग्मत समोषधिभिरोषधि: ॥
    धीरधैर्यपरीक्षार्थं धारितं परमेष्ठिना ।
    धत्तूरं कण्टकाकीर्णं गृहाण परमेश्वर ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।धतूराफलानि समर्पयामि ॥(धतूराफल समर्पित करे)
    ताम्बूल :-
    ॐ इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः ।
    यशा शमशद्द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिमन्ननातुराम् ॥
    ॐ नमस्त आयुधायानातताय धृष्णवे ।
    उभाभ्यामुत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने।।
    ॐ भूर्भूव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम।
    मुखवासार्थे सपूगीफलं ताम्बूलपत्रं समर्पयामि ।( पान और सुपारी चढ़ाये )
    दक्षिणा :-
    ॐ यद्दत्तं यत्परादान यत्पूर्त याश्च दक्षिणा:।
    तदाग्निर्वैश्वकर्मण:स्वर्देवेषु नो दधत् ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:।
    कृताया: पूजाया: सादुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्यपामि। ( द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये )
    आरती :- ॐ आ रात्रि पार्थिव रज: पितुरप्रायि धामभि: ।
    दिव: सदासिबृहती वितिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तम: ॥
    इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीरायप्र भरामहे मतीः ।
    यथा शमसद्द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् ॥
    मृळा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते ।
    यच्छं च योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुद्र प्रणीतिषु ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। कर्पूरार्तिक्यदीपं दर्शयामि । ( कपूर की आरती करे )
    प्रदक्षिणा :-
    ॐ मा नो महान्तमुत मा नो ऽअर्ब्भकं मा न ऽउक्षन्तमुत मा न ऽउक्षितम्।
    मा नो व्वधी: पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष: ॥
    मा नस्तोकेतनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः ।
    वीरान्मा नो रुद्र भामितोवधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ॥
    ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नम:। प्रदक्षिणां समर्यपामि। (प्रदक्षिणा करे )
    पुष्पाञ्जलि :-
    नमः सर्वहितार्थाय जगदाधार हेतवे ।
    साष्टांगोयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृत:।।
    पापोहं पाप कर्माहं पापात्मा पाप संभव:।
    त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव ।।
    पुजां अहं न जानामि त्वं शरणं जगदीश्वरं।
    सर्व पाप हरो शिव अभयं करोमि महेश्वरं ॥
    मङ्गलं भगवान शम्भु मङ्गलं वृषभध्वजः ।
    मङ्गलं पार्वतीनाथो मंगलायतनो शिव: ॥
    अथ मन्त्र पुष्पाञ्जलि: ॐ भूर्भुवः स्व: श्रीनर्मदेश्वर साम्बसदाशिवाय नमः। प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान् समर्पयामि॥(पुष्प अर्पित करें)
    प्रार्थना :-
    नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
    भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
    नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
    तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥
    मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
    नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
    मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
    तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
    शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
    सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
    श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
    तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
    वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
    मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
    चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
    तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
    यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
    पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
    दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
    तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
    अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
    अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थंवन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
    सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
    भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।
    कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
    सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।
    शिव आरती
    ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।
    त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥
    कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।
    गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥
    कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।
    रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥
    तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।
    तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥
    क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।
    इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥
    बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।
    किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥
    धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।
    क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥
    रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।
    चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥
    तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।
    अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥
    कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।
    त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥
    सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।
    डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥
    मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।
    वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥
    सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।
    इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥
    शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।
    नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥
    अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।
    अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥
    ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।
    रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥
    संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।
    शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥
    इति श्री शिव पूजन समाप्त।
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ कालसर्पदोष निवारण पूजा करिष्ये। 00:08:22
  • कलश पूजन

    सर्व-प्रथम कलश में रोली से स्वस्तिक चिह्न (सतिया) बनाकर एवं उसके गले मे मौली लपेटकर पूजक को अपनी वायी और अवीर-गुलाल से अष्टदल -कमल बनाकर उस पर सप्तधान्य या चावल अथवा गेहूं रखकर उसके ऊपर कलश को स्थापित कर निम्न विधान से पूजन करना चाहिए।

    भूमि स्पृशेत् :–
    ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽइमँ य्यज्ज्ञम्मिमिक्क्षताम् । पिपृतान्नो भरीमभिः । विश्वाधाराऽसि धरणी सेषनागोपरि स्थिता । उद्धृतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना ।। (भूमि का स्पर्श कर ।)

    धान्यप्रक्षेप :–
    ॐ ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ज्ञा । यस्म्मै कृणोति ब्राह्मणस्त गुंग राजन्न्पारयामसि (पृथ्वी पर सप्तधान्य रखे ।)

    कलशं स्थापयेत् :–
    ॐ आजिग्घ्र कलशं महय्या त्त्वा विशन्त्विन्दवः । पुनरूर्ज्जा निवर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्क्ष्वारुधारा पयस्वती पुनर्म्मा विशताद्रयिः ।हेमरूप्यादिसम्भूतं ताम्रजं सुदृढं नवम् ।
    कलशं धोतकल्माषं छिद्रवर्णविवर्जितम् ।। (सप्तधान्य पर कलश का स्थापन कर ।)

    कलशे जलपूरणम् :–
    ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्य स्कम्भसर्ज्जनीस्त्थो वरुणस्य ऽऋतसदन्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्यऽऋतसदनमासीद। जीवनं सर्वजीवानां पावनं पावनात्मकम् । वीज सर्वोषधीनां च तज्जलं पूरयाम्यहम् ।। (कलश में जल डाल दें।)

    गन्धप्रक्षेप :–
    ॐ त्वांगन्धर्वाऽअखनं स्वामिन्द्रस्त्वां वृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्यक्क्ष्मादमुच्च्यत ।।
    केशरागरुकंकोल घनसारसमन्वितम् । मृगनाभियुतं गन्धं कलशे प्रक्षिपाम्यहम ।।(कलश में चन्दन या रोली छोड़ें।)

    धान्यप्रक्षेप :–
    ॐ धान्यमसि धिनु हि देवान्प्राणायत्त्वो दानायत्त्वा व्यानायत्त्वा । दीर्घामनु प्रसितिमायुषेधान्देवोवः सविताहिरण्यपाणिः प्रतिगृब्भ्णात्त्वच्छिद्रेण पाणिना चक्क्षुषेत्त्वा महीनां पयोऽसि ।धान्यौषधी मनुष्याणां जीवनं परमं स्मृतम् । निर्मिता ब्रह्मणा पूर्व कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ।।(कलश में सप्तधान्य छोड़ दें ।)

    सर्वोषधीप्रक्षेप :–
    ॐ या ऽओषधीः पूर्वा जातादेवेभ्यस्त्रियुगम्पुरा । मनैनुबभ्रूणामह गुंग शतंधामानिसप्त च ।। ओषध्यः सर्वृक्षाणां तृणगुल्मलतास्तु याः । दूर्वासर्पप-संयुक्ताः कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ॥(कलश में सर्वोपधि डालें ।)

    दूर्वाप्रक्षेप :–
    ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्प्परि । एवानो दूर्व्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च । दूर्वेह्यमृतसम्पन्ने शतमूले शताङ्कुरे । शतं पातकसंहन्त्री कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ।। (कलश में दूर्वा छोड़ें ।)

    पञ्चपल्लवप्रक्षेप :–
    ॐ अश्वत्थेवोनिषदनम्पर्णेवोव्वसतिष्कृता ।
    गोभाजऽइत्किलासथयत्त्सनवथपूरुषम् ।।
    अश्वत्थोदुम्बरप्लक्षचूतन्यग्रोधपल्लवाः ।
    पञ्चैतान् पल्लवानस्मिन् कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ।।(कलश में पञ्चपल्लव अथवा आम का पत्ता रखें।)

    सप्तमृदाप्रक्षेपः :–
    ॐ स्योनापृथिविनोभवानृक्क्षरानिवेशनी । यच्छानःशर्मसप्प्रथाः अश्वस्थानाद्गजस्थानाद्वल्मीकात्सङ्गभादहृदात् । राजस्थानाञ्च गोष्ठाञ्च मृदमानीय निक्षिपेत् ।। (कलश में सप्तमृत्तिका या मिट्टी छोड़ें ।)

    फलप्रक्षेप :-
    ॐ याः फलिनीर्य्या ऽअफला ऽअपुष्पायाश्च पुष्पिणीः । वृहस्पतिप्रसूतास्ता नोमुञ्चन्त्व गुंग हसः ॥ पूगीफलमिदं दिव्यं पवित्रं पुण्यदं नृणाम् ।हारकं पापपुजानां कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ।।(कलश में सुपारी छोड़ें ।)

    पञ्चरत्नप्रक्षेप :–
    ॐ परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्त्यक्रमीत् । दधद्रत्नानिदाशुषे । कनकं कुलिशं नीलं पद्मरागं च मौक्तिकम् ॥ एतानि पञ्चरत्नानि कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ।।(कलश में पञ्चरत्न डालें ।)

    हिरण्यप्रक्षेप :–
    ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्यजातः पतिरेक ऽआसीत् । सदाधार पृथिवीन्द्यामुतेमाङ्कस्म्मै देवाय हविषा विधेम ।। हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः । अनन्तपुण्यफलदं कलशे प्रक्षिपाम्यहम् ॥(कलश में दक्षिणा छोड़ें ।)

    रक्तसूत्रेण वस्त्रेण वा कलशं वेष्टयेत् :-
    ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मव्वरूथमासदत्तस्वः । व्वासोऽ अग्नेविश्वरूप गुंग संव्ययस्व विभावसो । सूत्रं कर्पाससम्भूतं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । येन , बद्धं जगत्सर्व तेनेमं वेष्टयाम्यहम् ।।(कलश में लालवस्त्र अथवा मौली लपेट दें।)

    कलशस्योपरि पूर्णपात्रं न्यसेत् :–
    ॐ पूर्णादवि परापतसुपूर्णा पुनरापत । व्वस्नेव विक्क्रीणावहाऽइषमूर्ज गुंग शतक्क्रतो ।।
    पिधानं सर्ववस्तूनां सर्वकार्यार्थसाधनम् । सम्पूर्णः कलशो येन पात्रं तत्कलशोपरि ।।(कलश पर पूर्णपात्र रखें ।)

    पूर्णपात्रोपरि श्रीफलं नारिकेलं वा न्यसेत् :–
    ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्याक्तम् । इष्ण्णनिषाणांमुन्मइषाण सर्वलोकं म इषाण ।(पूर्णपात्र पर नारियल रखें ।)

    वरुणमावाहयेत् :–
    ॐ तत्त्वा यामि व्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश गुंग स मा नऽ आयुः प्रमोषीः ।।
    भगवन्वरुणागच्छ त्वमस्मिन् कलशे प्रभो ! कुर्वेऽत्रैव प्रतिष्ठां ते जलानां शुद्धिहेतवे ।। –
    अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि स्थापयामि । ॐ अपांपतये वरुणाय नमः । इति पञ्चोपचारैर्वरुणं सम्पूज्य ।

    कलशस्थितदेवानां नदीनाम् तीर्थानाम् च आवाहनम् —
    कलाकला हि देवानां दानवानां कलाकलाः ।।
    संगृह्य निर्मितो यस्मात् कलशस्तेन कथ्यते ।।
    कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः ।
    मूलत्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ।।
    कुक्षौ तु सागराः सप्त सप्तद्वीपा च मेदिनी ।
    अर्जुनी गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती ।।
    कावेरी कृष्णवेणा च गङ्गा चैव महानदी ।
    तापी गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ।।
    नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः ।
    पृथिव्यां यानि तीर्थानि कलशस्थानि यानि वै ।।
    सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।
    आयान्तु मम शान्त्यर्थ दुरितक्षयकारकाः ।।
    ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो यथर्वणः ।
    अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।।
    अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ।
    आयान्तु मम शान्त्यर्थ दुरितक्षयकारकाः ।। (ऊपर के श्लोकों को पढ़ते हुए अक्षत छोड़े ।)

    अक्षतान् गृहीत्वा प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात् :–
    ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्ज्यस्य वृहस्प्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञ गुंग समिमं दधातु । विश्वेदेवासऽइहमादयन्तामो ॐ प्रतिप्ठ्ठ ।। कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठिताः वरदाः भवन्तु । ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः । विष्णुवाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ।(कलश पर चावल छोड़कर स्पर्श करें ।)

    कलशस्य चतुर्दिक्षु चतुर्वेदान्पूजयेत् :–
    पूर्वे — ऋग्वेदाय नमः । दक्षिणे — यजुर्वेदाय नमः । पश्चिमे — सामवेदाय नमः । उत्तरे — अथर्ववेदाय नमः । कलशमध्ये अपाम्पतये वरुणाय नमः ।(कलश के चारों तरफ तथा मध्य में चावल छोड़ें ।)
    षोडशोपचारैः पूजनम् कुर्यात् :
    आसनार्थेऽक्षतान समर्पयामि ।
    पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
    हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि ।
    आचमनं समर्पयामि ।
    पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
    शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
    स्नानाङ्गाचमनं समर्पयामि ।
    वस्त्रम् समर्पयामि ।
    आचमनं समर्पयामि ।
    यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
    आचमनं समर्पयामि ।
    उपवस्त्रं समर्पयामि ।
    गन्धं समर्पयामि ।
    अक्षतान समर्पयामि ।
    पुष्पमालां समर्पयामि ।
    नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।
    धूपमाध्रापयामि ।
    दीपं दर्शयामि ।
    हस्तप्रक्षालनम् ।
    नैवेद्यं समर्पयामि ।
    आचमनीयं समर्पयामि ।
    मध्ये पानीयम् उत्तरापोशनं च समर्पयामि । ताम्बूलं समर्पयामि । पूगीफलं समर्पयामि । कृतायाः पूजायाः पाड्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि । मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
    अनया पूजया वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम ।

    कलश-प्रार्थना :–
    देवदानव-संवादे मध्यमाने महोदधौ ।
    उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ ! विधृतो विष्णुना स्वयम् ।।१।।
    त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः ।
    त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ।।२।।
    शिवः स्वयं त्वमेवाऽसि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः ।
    आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृका: ।।३।।
    त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः ।
    त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं कर्तुमीहे जलोद्भव ! ।
    सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ।।४।।
    नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्चेतहाराय सुमङ्गलाय ।
    सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ।।५।।
    पाशपाणे ! नमस्तुभ्यं पद्मिनीजीवनायक ! ।
    पुण्याहवाचनं यावत् तावत्वं मन्निधौ भव ॥६॥

    इति कलश पूजनम्
  • हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें और मंत्र बोलें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम् | उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् | आवाहन मंत्र- हाथ में अक्षत लेकर बोलें -
    ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ || अक्षत पात्र में अक्षत छोड़ें |

    पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र –
    एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम: |

    इस मंत्र से चंदन लगाएं:-
    इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम: |

    श्रीखंड चंदन लगाएं :-
    इदम् श्रीखंड चंदनम् ॐ गं गणपतये नम।

    अब सिन्दूर लगाएं :-
    “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम: |

    दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं |

    गणेश जी को लाल वस्त्र पहनाएं :-
    इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि |

    गणेश जी को प्रसाद चढ़ाएं:
    इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि: |

    मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: –
    इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि: |

    अब आचमन कराएं :-
    इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम: |

    इसके बाद पान सुपारी दें:
    इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि: |

    अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें:
    एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम: |
    00:08:22
  • कालसर्प पूजा की विधी भगवान शिव की पूजा के साथ शुरू होती है।उसके बाद, मुख्य पूजा शुरूवात होती है।
    उपासक को एक प्राथमिक संकल्प पदान करना होता है और फिर पूजा विधी की शुरुआत भगवान वरुण के पूजन के साथ होती है और इसके बाद भगवान गणेश पूजन होता है। भगवान वरुण के पूजन में कलश पूजन होता है जिसमें जल को देवता के रूप में पूजा जाता है। यह कहा जाता है कि सभी पवित्र जल, पवित्र शक्ति, और देवी, देवता की पूजा इस कलश के पूजा द्वारा की जाती है।
    प्रथम श्री गणेश भगवान का पूजन होता है।
    इसके पश्चात नागमंडल पूजा की जाती है, जिसमें १२ नागमूर्ति होती है।
    इन १२ नागमूर्तियोंमें १० मुर्तिया चांदी से निर्मित तथा १ सोने से एवं एक नागमूर्ति ताम्बे की होना अनिवार्य है।
    फिर हर नाग को नागमंडल में बिठाया जाता है जिसे लिंगतोभद्रमण्डल भी कहा जाता है।
    लिंगतोभद्रमण्डल की विधिवत प्राणप्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन किया जाता है।

    लिंगतोभद्रमण्डल पूजन :-
    अब भगवान शेषनाग का आवाहन करें | हाथ में अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए शेषनाग पर चढ़ाएं |
    आवाहन मन्त्र:-
    ॐ विप्रवर्गं श्र्वेत वर्णं सहस्र फ़ण संयुतम् |
    आवाहयाम्यहं देवं शेषं वै विश्व रूपिणं ||
    ॐ शेषाये नमः शेषं अवह्यामि | ईशान्यां अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||
    अब हाथ में अक्षत लें और प्राण प्रतिष्ठता करें |
    प्राण प्रतिष्ठा मन्त्र:-
    ॐ मनोजुतिर्जुषता माज्यस्य बृस्पतिर्यज्ञ मिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञ ठरंसमिनदधातु |
    विश्वेदेवसेऽइहं मदन्ता मों 3 प्रतिष्ठ ||
    अस्मै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्मै प्राणाः क्षरन्तु च,
    अस्ये देवत्वमर्चाये मामहेति च कश्चन ||
    मनसा देवी पूजन:-
    हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प लेकर मनसा देवी की स्थापना के लिए निम्न मंत्र पढ़ते हुए अक्षत कलश पर छोड़ दें |
    ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||
    अब मनसा देवी का पूजन पंचौपचार से करें |
    एक जल आचमनी चढ़ाएं:-
    ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः ईशनानं स्मर्पयामी ||
    चन्दन से गन्ध अर्पित करे:-
    ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः गन्धं समर्पयामि ||
    पुष्प अर्पित करें:-
    ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः पुष्पं समर्पयामि ||
    धूप :-
    ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः धूपं अर्घ्यामि ||
    दीप :-
    ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः दीपं दर्शयामि ||
    नवैद्य :-
    मेवो या दूध् से बना नैवेद्य अर्पित करें |
    प्रधान देव पूजन ध्यान:-
    अनंन्तपद्म पत्राथं फणाननेकतो ज्वलम् |
    दिव्याम्बर-धरं देवं, रत्न कुण्डल- मण्डितम् ||
    नानारत्न परिक्षिप्तं मकुट’ द्दुतिरंजितम |
    फणा मणिसहस्रोद्दै रसंख्यै पन्नगोतमे ||
    नाना कन्या सहस्रेण समंतात परिवारितम् |
    दिव्याभरण दिप्तागं दिव्यचंदन- चर्चितम् ||
    कालाग्निमिव दुर्धषर्म तेजसादित्य सन्निभम |
    ब्रह्मण्डाधार भूतं त्वां, यमुनातीर-वासितम ||
    भजेsहं दोष शन्त्यैत्र, पूजये कार्यसाधकम |
    आगच्छ काल सर्पख्या दोष आदि निवारय ||
    आसनम:-
    नवकुलाधिपं शेषं ,शुभ्र कच्छ्प वाहनम |
    नानारत्नसमायुकतम आसनं प्रति गृह्राताम ||
    पाद्दम:-
    अन्न्त प्रिय शेषं च जगदाधार –विग्रह |
    पाद्द्म ग्रहाणमक्तयात्वं काद्रवेय नमोस्तुते ||
    अर्घ्यम:-
    काश्यपेयं महाघोरं, मुनिभिवरदिन्तं प्रभो |
    अर्घ्यं गृहाणसर्वज्ञ भक्तय मां फ़लंदयाक ||
    आचमनीयम्:-
    सहस्र फ़णरुपेण वसुधाधारक प्रभो |
    गृहाणाचमनं दिव्यं पावनं च सुशीतलम् ||
    पन्चामृतं स्नानम्:-
    पन्चामृतं गृहाणेदं पावनं स्वभिषेचनम् |
    बलभद्रावतारेश ! क्षेयं कुरु मम प्रभो ||
    वस्त्रम्:-
    कौशेय युग्मदेवेश प्रीत्या तव मयार्पितम |
    पन्नगाधीशनागेन्द्र तक्ष्रर्यशत्रो नमोस्तुते ||
    यज्ञोपवीतम:-
    सुवर्ण निर्मितं सूत्रं पीतं कण्ठोपाहारकम् |
    अनेकरत्नसंयुक्तं सर्पराज नमोस्तुते ||
    अथ अंग पूजा:-
    अब चन्दन से अंग पूजा करें :-
    सहस्रफ़णाधारिणे नमः पादौ पूजयामि |
    अनंद्दाये नमः गुल्फ़ौ पूजयामि |
    विषदन्ताय नमः जंधौ पूजयामि |
    मन्दगतये नमः जानू पूजयामि |
    कृष्णाय नमः कटिं पूजयामि |
    पित्रे नमः नाभिं पूजयामि |
    श्र्वेताये नमः उदरं पूजयामि |
    उरगाये नमः स्त्नो पूजयामि |
    कलिकाये नमः भुजौ पूजयामि |
    जम्बूकण्ठाय नमः कण्ठं पूजयामि |
    दिजिह्वाये नमः मुखं पूजयामि |
    मणिभूषणाये नमः ललाटं पूजयामि |
    शेषाये नमः सिरं पूजयामि |
    अनन्ताये नमः सर्वांगान पूजयामि |
    गन्धं :-
    कस्तूरी कर्पूर केसराढयं गोरोचनं चागररक्तचन्दनं |
    श्री चन्द्राढयं शुभ दिव्यं गन्धं गृहाण नागाप्रिये मयार्तितम् ||
    अक्षतान्:-
    काश्मीर पंकलितप्राश्च शलेमानक्षतान शुभान् |
    पातालाधिपते तुभ्यं अक्षतान् त्वं गृहाण प्रभो ||
    पुष्पं :-
    केतकी पाटलजातिचम्पकै बकुलादिभिः |
    मोगरैः शतपत्रश्च पूजितो वरदो भव ||
    धूप दीप:-
    सौभाग्यं धूपं दीपं च दर्शयामि |
    नैवेद्दम् :-
    नैवेद्दा गृहातां देव क्षीराज्य दधि मिश्रितम् |
    नाना पक्वान्न संयुक्तं पयसं शर्करा युतम् ||
    फ़ल् ,ताम्बूल, दक्षिणाम, पुष्पांजलि नमस्कारं :-
    अनन्त संसार धरप्रियतां कालिन्दजवासक पन्नगाधिपते |
    न्मोसिस्म देवं कृपणं हि मत्वा रक्षस्व मां शंकर भूषणेश ||
    एक आचमनी जल चढाते हुये अगर कोई कमी रह गई हो तो उसकी पूर्णता के लिये प्रार्थना करें |:-
    अनयापूजन कर्मणा कृतेन अनन्तः प्रियताम् |
    राहु केतु सहित अनन्ताद्दावहित देवाः प्रियतम् नमः ||
    पूजन के पश्चात आप निम्न नव नाग गायत्री से 1008 आहुति किसी पात्र में अग्नि जला कर अजय आहुतिया देने के बाद दें |
    मन्त्र:-
    || ॐ नवकुलनागाये विदमहे, विषदन्ताय धीमहि तन्नोः सर्पः प्रचोदयात् ||
    अथ नाग बलि विधान :-
    उसके बाद नाग बली कर्म करना चाहिये | एक पीपल के पत्ते पर उड़द, चावल, दही रखकर एक रुई कि बत्ती बना कर रखें और उसका पूजन कर नाग बली अर्पण करें |
    प्रधान बली – इस मन्त्र से बली अर्पण करें :-
    ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो येकेन पृथ्वीमन |
    ये अन्तरिक्षे ये दिवोतेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ||
    अनन्त वासुकि शेषं पदमं कम्बलमेव च |
    धृतराष्ट्रं शंखपालं कालियं तक्षकं तथा,
    पिंगल च महानाम मासि मासि प्रकीर्तितम |
    अब नैऋत्य दिशा में सभी भूत दिक्पालों को बलि अर्पण करें |
    मन्त्र:-
    सर्वदिग्भुतेभ्यो नमः गंध पुष्पं समर्पयामि |
    सर्व दिग्भुत बलि द्रव्यये नमः गन्ध पुष्मं समर्पयामि |
    हस्ते जलमादाये सर्व दिग्भुते भ्यो नमः इदं बलि नवेद्यामि |
    नमस्कार :-
    सर्व दिग्भुते भ्यो नमः नमस्कार समर्पयामि |
    अनया पूजन पूर्वक कर्मणा कृतेन सर्व दिग्भुतेभ्यो नमः |
    मन्त्र पुष्पाजलि :-
    ॐ यज्ञेन यज्ञमय देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् |
    ते.ह् नाक महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ||
    प्रदक्षिणा :-
    यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञात कृतानि च |
    तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे –पदे ||

    —– इति श्री नाग बलि विधानं संपूर्णं ——-
    अब निम्न मंत्र पढ़ते हुए हाथ में जल लेकर सभी नागों पर छिडकें और इस मंत्र का 11 बार या 21 बार जप करें :-
    विश निर्मली मंत्र:- सर्पापसर्प भद्र्म ते गच्छ सर्प महा विष |
    जनमेजयस्य यज्ञान्ते, आस्तीक वचनं स्मर ||
    आस्तीक्स्य वच: श्रुत्वा, यः सर्पो ना निवर्तते |
    शतधाभिद्द्ते मूर्ध्नि, शिशं वृक्ष फ़लम् यथा ||
    अथ सर्प वध प्रयशिचत कर्म :-
    अगर मन, ह्रदय में ऐसा विचार हो कि मेरे दुआरा सर्प वध हुआ है | कई विद्वान् मानते हैं कि कुंडली में सर्प दोष या नाग दोष जिसे लोग काल सर्प योग भी कहते हैं तभी लगता है जब पूर्व जन्म में या स्व अथवा आपके पूर्वजों से सर्प वध हुआ हो | उसकी शांति यह कर्म करने से हो जाती है |
    संकल्प :-
    देशकालौ संकीर्त्या सभार्यस्य ममेह जन्मनि जन्मान्तरे वा ज्ञानाद अज्ञानदा जात सर्पवधोत्थ दोष परिहाराथर्म सर्पं संस्कारकर्म करिष्ये |
    अब आटे से बनाये हुये नाग को हाथ में अक्षत लेकर प्रार्थना करें – हे पूर्व काल में मरे हुए सर्प आप इस पिण्ड में आ जाएँ और अक्षत चढ़ाते हुए उसका पूजन करें | पूजन:-
    आप फूल, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से करें और नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि हे सर्प आप बलि ग्रहण करो और ऐश्वर्य को बढ़ाओ | फिर उसका सिंचन घी देकर करें | फिर विधि नामक अग्नि का ध्यान हवन कुण्ड में करें और संकल्प करें:- कि मैं अपना नाम व गोत्र बोलें और कहें – इस सर्प संस्कार होम रूप कर्म के विषय में देवता के परिग्रह के लिए अन्वाधान करता हूँ |
    अब “ ॐ भूः स्वाहा अग्नेय इदं “ बोल कर तीन आहुतियाँ दें और “ ॐ भूभूर्व: स्वः स्वाहा “ कह कर चौथी आहुति सर्प के मुख में दें फिर सुरवे में घी लेकर सर्प को सिंचन करें |
    गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पोषण करें और निम्न प्रार्थना कहें :-
    जो अन्तरिक्ष पृथ्वी स्वर्ग में रहने वाले हैं, उन सर्पो को नमस्कार है | जो सूर्य की किरण जल, इसमें विराजमान है, उनको नमस्कार है | जो यातुधानों के वाण रूप है, जो वनस्पति और वृक्षों पर सोते हैं उनको नमस्कार है | हे महा भोगिन रक्षा करो रक्षा करो सम्पूर्ण उपद्रव और दुख से मेरी रक्षा करो |पुष्ट जिसका शरीर है ऐसी पवित्र संतति को मुझे दो | कृपा से युक्त आप दीनों पे दया करने वाले आप शरणागत मेरी रक्षा करो |जो ज्ञान व अज्ञान से मैंने या मेरे पित्रों ने सर्प का वध इस जन्म या अन्य जन्म में किया हो, उस पाप को नष्ट करो और मेरे अपराध को क्षमा करो |
    अब उस नाग को होम अग्नि में भस्म कर दें और स्नान कर लें |
    अब जो सोने ताँबे चाँदी के सांप बनाए थे उन्हे नजदीक किसी नदी में विसर्जन करें और निम्न मंत्र 3 बार पढ़ कर विसर्जन कर दें | यह मंत्र अति गोपनीय है |
    =ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये दिवि येषां वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्रचि र्दशादक्षिणा दशप्रीतची र्दशोदीची र्दशोर्दुध्वाः तेब्भ्यो नमोsअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृडायन्तुते यन्द्रिविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेध्मः ||
    =ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये अन्तरिक्ष येषां वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्रचि र्दशादक्षिणा दशप्रीतची र्दशोदीची र्दशोर्दुध्वाः तेब्भ्यो नमोsअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृडायन्तुते यन्द्रिविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेध्मः ||
    =ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये पृथ्वी येषां वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्रचि र्दशादक्षिणा दशप्रीतची र्दशोदीची र्दशोर्दुध्वाः तेब्भ्यो नमोsअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृडायन्तुते यन्द्रिविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेध्मः ||
    इसके साथ ही इस कर्म में सर्प सूक्त का पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है |

    श्री सर्प सूक्त
    ब्रह्म्लोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य: |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    कद्र्वेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य: |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    ग्रामे वा यदि वारन्ये ये सर्पप्रचरन्ति |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    स्मुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जलंवासिन: |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: |
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||
    इसके पश्चात नाग मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
    राहु-केतु, सर्पमंत्र, सर्पसूक्त, मनसा देवी मन्त्र एवं महामृत्युंजय मंत्र की माला से जाप करके मन्त्रोद्वारा हवनादि किया जाता है।
    हवना के बाद जिस प्रतिमा से कालसर्प का दोष दूर होता है उसपर अभिषेक किया जाता है, और उसे पवित्र जलाशय या नदीमे विसर्जित किया जाता है।
    तीर्थ में स्नान करके, पूजा के दौरान धारण किए हुए वस्त्र वहीं छोड़ दिए जाते है तथा साथ में लाए हुए नए वस्त्र धारण किये जाते है।
    इसके पश्चात ताम्रनिर्मित सर्प मूर्ति को ज्योतिर्लिंगको अर्पण करके, सुवर्ण नाग की प्रतिमा मुख्य गुरूजी एवं अन्य नागमूर्तियाँ उनके सहयोगी गुरूजी को दिए जाते है।
  • आरती कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की।
    उग्र रूप है तुम्हारा देवा भक्त, सभी करते है सेवा ।।
    मनोकामना पूरण करते, तन-मन से जो सेवा करते।
    आरती कीजे श्री नाग देवता की , भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
    भक्तों के संकट हारी की आरती कीजे श्री नागदेवता की।
    आरती कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
    महादेव के गले की शोभा ग्राम देवता मै है पूजा।
    श्ररेत वर्ण है तुम्हारी धव्जा ।।
    दास ऊकार पर रहती क्रपा सहसत्रफनधारी की।
    आरती कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
    आरती कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
  • मेवे की मिठाई
पूजन सामग्री
  • 1)बाजोठ -२ नंग और 2) पाटला -२ नंग
  • श्रीफल
  • सुपारी -11 नंग
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच )
  • नाराछड़ी / मौली -5
  • जनेऊ -11 नंग
  • कपूरी पान - 7
  • कुमकुम ( रोली ) - १० ग्राम
  • चावल - १० ग्राम
  • अबीर -१० ग्राम
  • गुलाल - १० ग्राम
  • सिंदूर - १० ग्राम
  • लौंग -१० ग्राम
  • दही -१०० ग्राम
  • देशी घी - ५०० ग्राम
  • शहद - २५० ग्राम
  • शक्कर - २५० ग्राम
  • पंचमेवा - २५० ग्राम ( काजू,बादाम ,किशमिश,चिरौंजी,छुआरे )
  • पांच मिठाई - ५०० ग्राम
  • चन्दन -१० ग्राम ,
  • फूलो के हार -11 और फूल अलग से
  • हवन सामग्री
  • धुप - अगरबत्ती -१ पैकेट
  • नाग -9
वर्णन
 राहु और केतु को, "साँप" और "सांप की पूंछ" माना जाता है। कुल १२ प्रकार के विभिन्न काल सर्प योग है, जैसे अनंत, कुलिका, वासुकि, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूर, घटक, विषधर और शेष नाग योग। ऐसा कहा जाता है कि, जिस व्यक्ति के कुंडली में यह दोष रहता है उसे सांपों और साँप (सर्प) से काटने के सपने देखता है।
कालसर्प दोष कुंडली में होने के लक्षण:-
यह देखा गया है की, इस योग से प्रभावित व्यक्ति का स्वभाव सामाजिक होता हैं और उन्हें किसी चीज का लालच नहीं होता है।
१) व्यापार पर बुरा असर होना। 
२) ब्लडप्रेशर जैसी रक्त से संबधित बीमारियां, गुप्त शत्रु से परेशानी होना।  
३) सोते समय कोई गला दबा रहा हो ऐसा प्रतीत होना।
४) स्वप्न में खुदके घर पर परछाई दिखना।
५) नींद में शरीर पर साँप रेंगता होने का अहसास होना।
६) जीवनसाथी से विवाद होना।
७) रात में बार-बार नींद का खुलना।
८) स्वप्न में नदी या समुद्र दिखना।
९) पिता और पुत्र के बीच विवाद होना।
१०) स्वप्न में हमेशा लड़ाई झगड़ा होते दिखना।
११) मानसिक परेशानी, सिरदर्द, त्वचारोग होना।
कालसर्प दोष के कई उपाय है जो इस दोष को पूरी तरह नहीं ख़त्म करते लेकिन उसका नकारात्मक प्रभाव कम करते है:-हर सोमवार को भगवान शिवा को रूद्र अभिषेक समर्पित करना।
हर शनिवार को पीपल के पेड़ को पानी डालना चाहिए जिससे काल सर्प दोष से निर्मित समस्याएं कम होती है।
 रोज "महामृत्युंजय मंत्र " ( " ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ, त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥")
या " रूद्र मंत्र" का १०८ बार जाप करना, एक प्रभावी तरिका है। कुछ लोग "पंचाक्षरी मंत्र" (ॐ नमः शिवाय) का भी जाप करते है जिससे इस का बुरा असर काम होता है।