आनंद का गरबा

आनंद का गरबा बाला बहुचर माताजी ( बाला त्रिपुर सुंदरी माता ) की आराधना का प्रकार है। जो लोकगीत में गरबा के स्वरूप में प्रसिद्ध है।
माँ बाला बहुचरा (बाला त्रिपुर सुंदरी )का जिह्वा (जीभ ,वाणी ) पर स्वामित्व है। इसलिए बच्चे को बोलने में तकलीफ होती हो या कोई गूंगा हो तो उसका ये दोष दूर करके स्पष्ट उच्चारण हो,वाणी मधुर बने और व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है।
आनंद का मतलब ख़ुशी ,तो माता का गरबा रूपी आराधना करने से घर -परिवार में आनंद और प्रेमपूर्ण माहौल बनता है।

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Eligible For Puja: Anyone 1 Students enrolled
Last updated Wed, 23-Sep-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • गरबा करने से परिवार में प्यार और पैसा बना रहता हे।
  • सभी प्रकार की समृद्धी के लिए हर बुधवार ३ बार गरबा पढ़ने मात्र से हर मनोकामना पूर्ण होती हे।
  • सन्तान की वाणी से संबधित कोई भी परेशानी हो उसमे राहत होती हे।
  • व्यापार और सम्बन्धो में परिपक़्वता आती हे और उन्नति होती हे।

पूजाविधि के चरण
00:50:12 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • सर्व प्रथम एक लकड़ी का बाजोठ /पाटला / चौकी पर , लाल वस्त्र (१ मीटर) बिछाकर मध्य में बहुचर ( त्रिपुर सुंदरी माँ ) माताजी की फोटो या मूर्ति की स्थापना करे। साथ में आपकी जो कुलदेवी होउनकी छबि या मूर्ति रखे। माँ की बायीं बाजु गरबा ( २७ छेदवाली मटकी ), जिसके अंदर गाय के घी से भरा अखंड दिया रखना है। फिर माँ को रोली,अक्षत ,अबीर,गुलाल, फूलो का हार चढ़ाना है। गरबे की मटकी को एक हार चढ़ाना है ,उसको भी कुमकुम ,अक्षत ,फूल चढ़ाना है। दायी बाजु जल से भरा हुआ ५ पान के ऊपर श्रीफल रखना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में पंचमेवा ,पांच फल , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे। 00:08:22
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ आनंद का गरबा करिष्ये। 00:08:22
  • सर्व मंगल मंगल्ये शिव सर्वार्थ साधिके
    शरण्ये त्र्यंबकये गौरी नारायणी नमोस्तुते

    आई आज मुने आनंद वध्यो अति घणो माँ ,
    गावा गरबा छंद , बहुचर मात तणो माँ.............१

    अलवे आलपंपाल, अपेक्षा ज आणि माँ,
    छो इच्छा प्रतिपाल, धो अमृत वाणी माँ ............२

    स्वर्ग मुर्त्यु पाताल, वास सकल तारो माँ ,
    बाल करी संभाल, कर जालो म्हारो माँ ............३

    तोतलाज मुख तन्न, तो तो तोय कहे माँ ,
    अर्भक मागे अन्न, निज माता मन ल्हे माँ ..........४

    नहीं सव्य अपसव्य, कही काई जाणू माँ ,
    कवि कहाव्या काव्य, मन मिथ्या आणु माँ ........५

    कुलज कुपात्र कुशील, कर्म अकर्म भर्यो माँ ,
    मुरखमां अनमिल , रस रटवा विचार्यो माँ .........६

    मूढ़ प्रमाणे मत्ति, मन मिथ्या मापी माँ ,
    कोण लहे उत्पति, विश्वे रह्या व्यापी माँ..............७

    प्राकर्म प्रौढ़ प्रचंड, प्रबल न पल प्रीछु माँ ,
    पूरण प्रगट अखंड, अज्ञ थको इच्छु माँ .............८

    अर्णव ओछे पात्र, अकल करी आणु माँ ,
    पामु नहि पलमात्र, मन जाणु नाणु माँ ..............९

    रसना युग्म हजार, ते रटता हायो माँ ,
    इशे अंश लगार, लई मन्मथ मार्यो माँ .................१०

    मार्कण्ड मुनिराय मुख, महात्मय भाख्युं माँ ,
    जैमिनी ऋषि जेवाय, उर अंतर राख्यू माँ .............११

    अणगण गुण अति गीत, खेल खरो न्यारो माँ ,
    मात जागती ज्योत, जलहलतो पारो माँ................१२

    जलतृणवत गुणगान, कहुँ उंडल गुंडल माँ ,
    भरवा बुद्धि बे हाथ, ओघामा उडल माँ ...............१३

    पाय नमावी शीश, कहुँ घेलु गांडु माँ ,
    मात न धरशो रीस, छो खुल्लु खांडू माँ...............१४

    आद्य निरंजन एक, अलख अकल राणी माँ ,
    तुजथी अवर अनेक, विस्तरता जाणी माँ..............१५

    शक्ति सृजवा सृष्टि, सहज स्वभाव स्वलप माँ ,
    किंचित करुणा दृष्टि, कृत कृत कोटि कल्प माँ.....१६

    मातंगी मन मुक्त, रमवा कीधु मन माँ ,
    जोवा युक्त अयुक्त, रचिया चौद भुवन माँ ..........१७

    नीर गगन भू तेज, सेज करी नीरम्या माँ ,
    मारुत वन जे छे ज, भांड करी भरम्या माँ ..........१८

    तत्क्षण तनथी देह, त्रण करी पेदा मां ,
    भवकृत कर्ता जेह, सरजे पाले छेदा माँ .............१९

    प्रथम कर्यों उच्चार, वेद चार वायक माँ ,
    धर्म समस्त प्रकार, भू भणवा लायक माँ ............२०

    प्रगटी पंचमहाभूत, अवर सर्वे जे को माँ ,
    शक्ति सर्वे संयुक्त, शक्ति विना नहि को माँ.........२१

    मूल महीं मंडाल, महा महेश्वरी माँ ,
    जग सचराचर जाण, जय विश्वेश्वरी माँ ..............२२

    जल मध्ये जलशायी, पोढ्या जगजीवन माँ ,
    बैठा अंतरीक्ष आई, खोले राखी तन माँ.............२३

    व्योम विमाननी वाट, ठाठ ठठ्यो आछो माँ ,
    घट घट सरखो घाट, काच बन्यो काचो माँ .......२४

    जनम जनम अवतार,आकारे जाणी माँ ,
    निर्मित हित नरनार, नखशिख नारायणी माँ ......२५

    पन्नग ने पशु पंखी, पृथक प्राणी माँ ,
    जुग जुग मांहि, जांखी रूपे रुद्राणीं माँ .............२६

    चक्षु चंचल चैतन्य, वच चाहन टीकी माँ ,
    जणाववा जन मन, मध्य मात कीकी माँ............२७

    कणचार तृणचर वायु, चर वारि चरता माँ ,
    उदर उदर भरी आयु, तु भवनी भरता माँ .........२८

    रजो तमो ने सत्त्व, त्रिगुणात्मक त्राता माँ ,
    त्रिभुवन तारण तत्त्व, जगत तणी माता माँ ..........२९

    ज्यां जेम त्या तम रूप, तेज धर्या सघले माँ ,
    कोटि करे जप धूप, कोई तुजने न कले माँ........३०

    मेरु शिखर महिमाय, धोलागढ़ पासे माँ ,
    बाली बहुचर माय, आद्य वसे वासो माँ...............३१

    न लहे ब्रह्मा भेद, गृह गति तारी माँ ,
    वाणी वखाणे वेद, शी मति मारी माँ..................३२

    विष्णु विमासी मन्य, धन्य ज उच्चरिया माँ ,
    अवर न तुजथी अन्य, बाली बहुचरी माँ.............३३

    माने मन महेश, मात दया कीजे माँ ,
    जाणे सुरपति सुरेश, सहु तारा लीधे माँ ............३४

    सहस्त्र फणाधार शेष, शक्ति सबल साधी माँ ,
    नाम धर्यु नागेश, कीर्ति तो वाधी माँ..................३५

    मच्छ कच्छ वाराह, नृसिंह वामन थई माँ ,
    अवतारों ते ताराह, तु महात्मय थई माँ..............३६

    परशुराम श्रीराम, कृष्ण नाम जेह माँ ,
    बुद्ध कलकी नाम, दशविध धारी देह माँ...........३७

    मध्य मथुराथी बाल, गोकुल पहोच्यु' तु माँ ,
    ते नाखी मोहजाल, बीजु को नहोतु माँ..............३८

    कृष्ण कृष्ण अवतार, कली कारण कीधु माँ ,
    भक्ति मुक्ति दातार, थई दर्शन दिधु माँ............३९

    व्यंढल ने वली नार, पुरुषपणे राख्या माँ ,
    ऐ अचरज संसार, श्रुति स्मृतिऐ भाख्या माँ.........४०

    जाणी व्यंढल काय, जगमाँ अणजुक्ति माँ ,
    मा मोटे महिमाय, इंद्र कथे युक्ति माँ...............४१

    मेरामण मथि मेर, कीधो रवैयो स्थिर माँ ,
    काढ्या रत्न एक तेर, वासुकि ना नेतर माँ...........४२

    सुर संकट हरनार, सेवकना सन्मुख माँ ,
    ऐवी गति अगम-अपार, आनंद दे अधिसुख माँ.....४३

    सनकादिक मुनि साथ, सेवी विविध विधे माँ ,
    आराधी नवनाथ, चौरासी सिद्धे माँ ...................४४

    आवी अयोध्या ईश, नामी शीश मल्या माँ,
    दश मस्तक भुज वीश, छेदी सीत वल्या माँ.........४५

    नृप भीमकनी कुमारी, तम पूजे पामी माँ ,
    रुक्मणि रमन मोरारी, मन मान्यो स्वामी माँ........४६

    राख्या पांडु कुमार, छाना स्त्री संगे माँ ,
    संवत्सर एक बार, वाम्या तम अंगे माँ................४७

    बांध्यो तन पध्मन, छूटे नहि कोथी माँ ,
    समरी पूरी शंखन, गयो काराग्रहथी माँ.............४८

    वेद पुराण प्रमाण, शास्त्र सकल सखी माँ ,
    शक्ति सृष्टि मंडाल, सर्व रह्या राखी माँ ...........४९

    ज्यां ज्यां जुगते जोई, त्या त्या तू ऐवी माँ ,
    सम विभ्रम मति खोई, कही न शकु केवी माँ....५०

    भूत भविष्य वर्तमान, भगवती तु भवानी माँ ,
    आदि मध्य अंत आण, आकाशे अवनी माँ........५१

    तिमिर हरण शशीसुर, ते तारो धोखो माँ ,
    अमी अग्नि भरपूर, थई पोखो शोखो माँ............५२

    षटऋतु रस षटमास, द्वादश प्रतिबन्धे माँ ,
    अंधकार उजाश, अनुक्रमे अनुसंधे माँ.............५३

    धरती तल धनधान्य, ध्यान धर्ये नावो माँ,
    प्रजा पालन प्रजन्य, अणचिंतव्या आवो माँ..........५४

    सकल सिद्धि सुखदायी, पय दधि धुत माही माँ ,
    सर्वे रस सरसाई, तुज वीण नहि काई माँ ..........५५

    सुख दुःख बे संसार, तारा निपजावया माँ ,
    बुद्धी बल बलिहार, घणु डाह्या वाह्य माँ.............५६

    क्षुधा तृषा निद्राय, लघु यौवन वृद्धा माँ ,
    शांति शौर्य क्षमाय, तु सघले श्रद्धा माँ ...............५७

    काम क्रोध मोह लोभ, मद मत्सर ममता माँ ,
    तृष्णा स्थिरता क्षोभ, शोर्य धैर्य समता माँ............५८

    धर्म अर्थ ने काम , मोक्ष तू मम्माया मां ,
    विश्व तणो विश्राम, उर अंतर छाया माँ ...............५९

    उदय उगम अस्त, आद्य अनादिनी मां,
    भाषा भुर समस्त, वाक विवादिनी माँ..................६०

    हर्ष हास्य उपहास्य, काव्य कवितवित तु माँ,
    भाव भेद नीज भाष्य, भ्रांति भली चित्त तु माँ.........६१

    गीत नृत्य वजित्र, ताल तान माने माँ,
    वाणी विविध विचित्र, दुगृण अगणित गाने माँ........६२

    रतिरस विविध विलास, आश सकल जगनि माँ ,
    तान मन मध्ये वास, मोह माया अग्नि माँ ..............६३

    जाणे अजाणे जगत, बे बाधां जाणे माँ ,
    जीव सकल आसक्त, सहु सरखा माणे माँ ...........६४

    विविध भोग मरजाद, जग दाखयु चाख्यु माँ ,
    गरथ सूरत निःस्वाद, पदे पोते राख्यु माँ ..............६५

    जड़ थड शाखा पत्र, फूल फले फरती माँ ,
    परमाणु एक मात्र, रसबस विचरती माँ.................६६

    निपट अटपटी वात, नाम कहु कोनु माँ ,
    सरजी साते धात, मात अधिक सोनु माँ................६७

    रत्नमणि माणेक, नंग मढ़िया मुक्ता माँ ,
    आभा अटल अधिक, अन्य न सयुक्ता माँ.............६८

    नील पीत ने रक्त, श्याम श्वेत सरखी माँ ,
    उभय व्यक्त अव्यक्त, जग जने नीरखी माँ...........६९

    नाग जे अष्ट कुल आठ, हिमाचल आघे माँ ,
    पवन गगन ठठी ठाठ, तुज रचिता बांधे माँ............७०

    व्यापी कूप तलाव, तु सरिता सिंधु माँ ,
    जल तारण जयम नाव, तु तारण भव सिंधु माँ ........७१

    वृक्ष वन भार अढार, भू उपर उभा माँ ,
    कृत्य कर्म करनार, कोश विद्या कुंभा माँ...............७२

    जड़ चेतन अभिधान, अंश अंशधारी माँ ,
    मानवी मोटे मान, ऐ करणी तारी माँ.....................७३

    वर्ण चार विधि कर्म, धर्म सहित स्थापी माँ ,
    बे ने बार अपर्म, अविचल वर आपी माँ.................७४

    तृप्ते तृप्ते आश, मात नयन जो ते माँ....................७५

    लख चोरासी जन, सहु तहारा कीधा माँ ,
    आणी असुरनो अंत, दंड भला दीधा माँ................७६

    दुष्ट दम्या कई वार, दारुण दुःख देता माँ ,
    दैत्य कर्या संहार, भाग यज्ञे लेता माँ......................७७

    शुद्धिकरण संसार, कर त्रिशूल लीधुं माँ ,
    भूमि तणो शिर भार, हरवा मन कीधुं माँ ...............७८

    बहुचर बुद्धि उदार, खली खोल खावा माँ ,
    संत करण भवपार, साध्य करे सहावा माँ ..............७९

    अधम उध्दारण हार, आसनथी उठी माँ ,
    राखण जग व्यवहार, बद्ध बांधी मुट्ठी माँ ...............८०

    आणी मन आनंद, मही मांड्या पगला माँ ,
    तेज किरण रविचंद्र, दई नाना डगला माँ ...............८१

    भर्या कदम बे चार, मदमाती मदभर माँ ,
    मनमाँ करी विचार, तेडाव्यो अनुचर माँ ................८२

    कुर्कट करी आरोह, करुणाकर चाली माँ ,
    नख पंखी मयलोक, पग पृथ्वी हाली माँ ................८३

    उडीने आकाश थई, अद्भुत आव्यो माँ ,
    अध क्षणमाँ एक श्वास, अवनितल लाव्यो माँ ..........८४

    पापी करण नीपात,पृथ्वी पड मांही माँ ,
    गोठयू मन गुजरात, भीलां भड़ मांही माँ ...............८५

    भोली भवानी माय, भाव भले भाले माँ ,
    कीधी घणी कृपाय, आवी चुवाले माँ ....................८६

    नवखंड़ न्याली नेह, नजर नजर पेठी माँ ,
    त्रण गाम तरभेट, ठेठ ठरी बेठी माँ .....................८७

    सेवक सरण आज, शंखलपुर शेढे माँ ,
    उठ्यो एक अवाज, देडाणा नेडे माँ ....................८८

    आव्या अशरण शरण, अति आनंद भर्यो माँ ,
    उदित मुदित रविकिर्ण, दश दिश जश प्रसर्यो माँ ...८९

    सकल समय जगमात, बेठा चित्त स्थिर थई माँ ,
    वसुधा मध्य विख्यात, वात वायु विध गई माँ ...........९०

    जाणे सहु जग जोर, जगजननी जोखे माँ ,
    अधिक उड़ाडयो शोर, वास करी गोखे माँ .............९१

    चार खूंट चोखाण,चर्चा ऐ चाली माँ ,
    जनजन प्रतिमुख वाण, बहुचर बिरदाली माँ ............९२

    उदो उदो जयकार,कीधो नव खंडे माँ ,
    मंगल वत्या चार, चौदे ब्रह्मांडे माँ ..........................९३

    गाजया सागर सात, दुधे मेह त्रुठया माँ ,
    अधम अधर्म उत्पात, सहु कीधा जूठा माँ ................९४

    हरख्या सुर नर नाग, मुख जोई मानु माँ ,
    अवलोकी अनुराग, मुनिमन सरखानु माँ .................९५

    नवग्रह नमवा आज, पाय पडी आव्या माँ ,
    लूण उतारवा काज, मणिमुक्ता लाव्या माँ ................९६

    दश दिशना दिगपाल, देखी दुःख वाम्या माँ ,
    जन्म मरण जंजोल, मटता सुख पाम्या माँ ................९७

    गुण गांधर्व यश गान, नृत्य करे रंभा माँ ,
    सुर स्वर सुणता कान, गति थई गई थंभा माँ .............९८

    गुणनिधि गरबो जेह, बहुचर मात केरो माँ ,
    धारे धारी देह, सफल फले फेरो माँ ........................९९

    पामे पदार्थ पांच, श्रवणे साभड़ता माँ ,
    ना 'वे उन्ही आंच, दावानल बलता माँ .....................१००

    शस्त्र न अड़के अंग, आध्यशक्ति राखे माँ ,
    नित्य नित्य नवले रंग, धर्म कर्म पाखे माँ...................१०१

    जलजे अकल अगाध, उतारे बेडो पार माँ ,
    क्षण क्षण निशदिन प्रात, भव संकट फेड माँ .............१०२

    भूत प्रेत जाबुक, व्यंतर डाकिणी माँ ,
    ना 'वे आड़ी अचूक, समरे शाकिणी माँ ...................१०३

    चरण करण गति भंग, खंग पंग वाले माँ ,
    गुंग मुंग मुख अंग, व्याधि बधी टाले माँ ...................१०४

    नेण विहोणाने नेण, नेणा आपे माँ ,
    पुत्रविहोणाने दई पुत्र, मेंणा तु कापे माँ ...................१०५

    कलि कल्पतरु जाड़, जे जाणे तेने माँ ,
    भक्त लडावे लाड, पाड विना केने माँ ....................१०६

    प्रगट पुरुष पुरुषाई, तु आपे पलमा माँ ,
    ठाला घेर ठकराई, दो दल हल पलमा माँ ..............१०७

    निर्धनने धनपात्र,तु करता शु छे माँ ,
    रोग दोष दुःख मात्र, तु हारता शु छे माँ ..................१०८

    हय गज रथ सुखपाल, आल विना अजरे माँ ,
    बिरदे बहुचर बाल, न्याल करे नजरे माँ ..................१०९

    धर्म धजा धन धान, न टले धाम थकी माँ ,
    महिपति दे मुख मान, माना नाम थकी माँ ...............११०

    नरनारी धरी देह, हे ते जे गाशे माँ ,
    कुमति कर्म कृत खेह, थई उठी जाशे माँ ................१११

    भगवती गीत चरित्र, नित्य सुणशे काने माँ ,
    थई कुल सहित पवित्र, चडशे विमाने माँ .................११२

    तु थी नहीं को वस्त, तेथी तु ने तपृ माँ ,
    पूरण प्रगट प्रशस्त, शी उपमा अर्पू माँ....................११३

    वारंवार प्रणाम, कर जोडी कीजे माँ ,
    निर्मल निश्वल नाम, जननीनु लीजे माँ .....................११४

    नमो नमो जग मात, नाम सहस्त्र तारा माँ ,
    मात तात ने भ्रात, तु सर्वे मारा माँ ..........................११५

    सवंत शतदश सात, नव फाल्गुन सुदे माँ ,
    तिथि तृतीया विख्यात, शुभ वासर बुधे माँ ...............११६

    राजनगर निज धाम, पुर नविन मध्ये माँ ,
    आई आद्य विश्राम, जाणे जग मध्य माँ ...................११७

    करी दुर्लभ सुलभ, रहु छु छेवाड़ो माँ ,
    कर जोडी ' वल्लभ ' कहे, भट्ट मेवाडो माँ................११८

    आनंद का गरबा समाप्त
    00:08:22
  • जय बहुचर बाली , जय बहुचर बाली
    आरासुर मां अम्बा माँ , पावागढ़ मां काली ।।
    उत्तम पे ओढ़न गाट पेरण कड़कड़ती साडी, माँ (२)
    कुकड़ा करे किल्लोल , छंद दे ताली................जय बहुचर बाली
    मांग भरा सिन्दूर,रवि शशि अजवाली माँ (२)
    नाके वेसरवर मोर मा , नाके मोती नई वाली......जय बहुचर बाली
    निर्मल ज्योत स्वरूप , जोता दिवाली माँ (२)
    भगत ने पाल्या लाड मा, ऐवी मा मतवाली.........जय बहुचर बाली
    नवजोबन भरपूर , चाले लटकाली मोटी मा (२)
    दर्पण लईने हाथमां, जोता मुख निहाली............जय बहुचर बाली
    मनई हरखा देव , वाचा तमे पाली माँ (२)
    दैत्य दुष्ट ने हणवामां, तर्त बेठा रथ मांहि...........जय बहुचर बाली
    मा दुःख टाली ने सुख आपो,सुख नी खुशाली माँ.(२)
    दर्शन तारा दुर्लभ , माँ चूंवाली बाली................जय बहुचर बाली
    केटला भरा रणशूर माँ , केटला त्रिशूलधारी माँ (२)
    अवनीत पड़ीओ रंगमा ,जोता मुख निहाली ......जय बहुचर बाली
    हिमाचल वासे वसो माँ, रुपए रढ़ियाली माँ (२)
    माँ जे पाम्या दर्शन ,तेने दिवाली माँ ................जय बहुचर बाली
    शंकर वसे कैलास , कण्ठे विष धरता माँ (२)
    किरपा करीने मा तमे उगार्या ,राख्या विष धुता...जय बहुचर बाली
    माँ रण भरियो भण्डार, उपनि बहु सारी माँ (२)
    कर जोडिने कहे ''वल्लभ'' वैकुण्ठे जाशे ..........जय बहुचर बाली
    00:08:22
  • पंचमेवा मिश्रित मिसरी (क्रिस्टल साकर) या शक्ति अनुसार 00:08:22
पूजन सामग्री
  • १)बाजोठ -१ नंग और १) पाटला -१नंग
  • हरा वस्त्र - -सवा मीटर
  • बहुचर माताजी (त्रिपुर सुंदरी माता ) की फोटो या मूर्ति -१
  • ताम्बा / पित्तल /चाँदी / मिट्टी का २७ छेद वाली मटकी (गरबा )- १
  • गेहू - २५० ग्राम
  • फूलो के हार -३ और फूल अलग से
  • कुमकुम ( रोली ) - १० ग्राम
  • चावल - १० ग्राम
  • अबीर -१० ग्राम
  • गुलाल - १० ग्राम
  • सिंदूर - १० ग्राम
  • पंचमेवा - २५० ग्राम
  • पांच फल
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • अखंड ज्योति के लिए दिया -१ , आरती के लिए - ५
  • धुप - अगरबत्ती -१ पैकेट
वर्णन
माँ त्रिपुर सुंदरी देवी ही गुजरात में माँ बहुचर के रूप में जानी जाती है।  उनका इतिहास भव्य है। माँ त्रिपुर सुंदरी देवी बहुत शालीन ,सौम्य ,बुद्धि देवी की है।
 देवी त्रिपुर सुंदरी अनुपम सौंदर्य, भक्तों को अभय प्रदान करने वाली, यौवनयुक्त और तीनों लोकों में विराजमान है और उन्हें कई नामों से जाना जाता है। 
कहते हैं कि त्रिपुर सुंदरी की आराधना करने वाले भक्तों को लौकिक और पारलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। देवी पुराण में माता की बहुत सी शक्तियों के बारे में बात की गई है। 
 देवी त्रिपुर सुंदरी अपने भक्तों की हर प्रकार की मनोकामना को पूरी करती है। उनकी हर विपत्ति को दूर करती हैं और उन्हें अभय प्रदान करती हैं। कहा जाता है कि देवी त्रिपूर सुंदरी की पूजा करने से आत्मिक बल, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।