जय भैरव देवा प्रभु जय भैरव देवा , सुर नर मुनि सब करते प्रभु तुम्हरी सेवा ॥
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जय भैरव देवा प्रभु जय भैरव देवा ,
सुर नर मुनि सब करते प्रभु तुम्हरी सेवा ॥
तुम पाप उद्धारक दु:ख सिन्धु तारक,
भक्तों के सुखकारक भीषण वपु धारक ॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी,
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी॥
तुम बिन शिव सेवा सफल नहीं होवे,
चतुर्वतिका दीपक दर्शन दु:ख खोवे ॥
तेल चटकि दधि मिश्रित भाशावलि तेरी,
कृपा किजिये भैरव करिये नहीं देरी ॥
पाँवों घूंघरू बाजत डमरू डमकावत,
बटुकनाथ बन बालक जन मन हरषावत ॥
बटुकनाथ की आरती जो कोई जबन गावे ,
कहे ‘धरणीधर’ वह नर मन वांछितफल पावे ॥
॥ इति श्री बटुक आरती ॥
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