अर्गला स्तोत्रम्

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि । जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥१॥

For Vidhi,
Email:- info@vpandit.com
Contact Number:- 1800-890-1431

Eligible For Puja: Anyone 0 Students enrolled
Last updated on : Thu, 30-Mar-2023 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ

पूजाविधि के चरण
00:00:00 Hours
पूजन सामग्री
वर्णन

 

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥१॥

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।

दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥२॥

मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥३॥

महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥४॥

धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥५॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥६॥

निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रैलोक्यशुभदे नमः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥७॥

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥८॥

अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥९॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१०॥

स्तुवद्भयो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥११॥

चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१२॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१३॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१४॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१५॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१६॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१७॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१८॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१९॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२०॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२१॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२२॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२३॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२४॥

भार्या मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२५॥

तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२६॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्र पठेन्नरः ।

सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ॥२७॥